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दूसरा अध्याय : पुद्गल के लक्षणो का विश्लेषण
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पाया जाता है।
ख-दूसरा गुण अजीव । आकाश, धर्म, अधर्म तथा काल मे भी पाया जाता है। __ गतीसरा-चौथा गुण अस्तिकाय। काल को छोड कर वाकी पांच द्रव्यो में पाया जाता है।
घ-छठा गुण क्रियावान् । जीव में भी पाया जाता है।
च-पाठवां गुण परिणामी। जीव और पुद्गलो में कहा गया है।
छ-नवां गुण अनन्त द्रव्य अपेक्षा । जीव भी द्रव्य-अपेक्षा से अनन्त है। - ज-दसवाँ गुण लोक प्रमाण। धर्म, अधर्म, जीव भी लोकप्रमाण है।
झ-पाँचवाँ गुण रूपी। केवल पुद्गल में ही होता है।
ट-सातवाँ गुण गलन-मिलन-सस्थान। पुद्गल का स्वभाव गुण है, केवल इसीमें पाया जाता है।
ठ-उपरोक्त दम गुण पर-द्रव्य सम्वन्धित नही है लेकिन ११वां गुण पर-उपकार गुण है तथा जीव द्रव्य से सम्बन्धित है। इस गुण के कारण जीव पुद्गल को ग्रहण कर सकता है या कहिये जीव और पुद्गल का वन्ध हो सकता है। दूसरे द्रव्य भी निजनिज स्वभाव के अनुसार जीव का उपकार करते है।
हमने पुद्गल के पारिणामिक फलात नियमो का वर्णन परिभापा में नही किया है क्योकि पुद्गल के परिणमन करने के नियम "वन्धे