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दूनन अध्याय पुद्गल के लक्षणों का विश्लेषण
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परिणाम कहा है।
(५) नत्लायंत्र के नाप्य में "पुद्गल जीवात्नु क्रियाबन्त" इस पद ने पुदगल नया जीव को क्रियावान् कहा गया है नया "निरिठयाणि" सूत्र में वर्म, अरमं नया आकाश की जो निस्त्रिय कहा गया है वह पग्न्यिन्दनजन्य क्रिया निमित्त मे कहा गया है अर्यात धर्म, अयम नया पात्राय यह नीनो पग्व्यिन्दनजन्य देशान्तर प्राप्नि आदि क्रिया विप नहीं कर सकते है। वाद-व्ययादि मामान्य श्यिा का प्रनियंत्र टन मूत्र में नहीं हैं। अर्थ-पर्याय का उत्पायर तो उनमें भी होता है। जीवात्मा भी बनात्र ने निरिथ्य है, क्योकि अग्न्यिन्दात्मक है।
वर्म-नोकर्म निमिन में, कार्माग गर्न सम्बन ने जीवात्मा के प्रदद्या में परिम्पन्दन होता है, इसलिए जीव को गिन्यावन्न न्हा Tा है। अष्टविक्रम-श्रय हो जाने में काम गर्ग का
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१-द्रव्यन्य स्वजान्यपरित्यागेन परिन्यदेनर प्रयोगन पर्यार
बनाव परिणाम। २-पुदान जीवनिनी या विशेष प्रिन्या देशान्तर प्राप्ति लक्षणानन्या. प्रतियोऽयम्, नोत्पादादि सामान्य गिन्याया
-नवार्यमूत्र ५. ६ की सिद्धिमेनीय टीका में। ३ नत्त्वार्य राजवातिकम् ५वा अन्याय के सूत्र के १८चे पद की व्याख्या में। फार्मण गरोगनबनात्मप्रदेन परिम्पदन ल्पा किया।
---तत्त्वार्य लोक वातिक २:२५