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( 58 ) एवं भूतनय
अतीत और भावी पर्याय का बोध कराने वाले शब्द का प्रयोग समुचित नही है यह इस नय का अध्यवसाय है । अर्यवोध के लिए द का प्रयोग वही होना चाहिए जो वर्तमान पर्याय (या क्रिया) का वाचक हो ।
अध्यापक विद्यार्थी को पढ़ा रहा है ।
इस वाक्य मे अध्यापन क्रिया में परिणत व्यक्ति को अध्यापक कहा गया है, ___ इसलिए यह समुचित प्रयोग है।
अध्यापक भोजन कर रहा है ।
इस वाक्य मे अध्यापक शब्द का प्रयोग समुचित नहीं है । वह भोजन की क्रिया मे परिणत है इसलिए उसे अध्यापक नही कहा जा सकता है । नय की मर्यादा
द्रव्य सामान्य है और पर्याय विशे५ । ये दो ही मूलभूत प्रमेय हैं। इन्ही के श्रावार ५२ नय के दो मौलिक भेद किए गए हैं
(1) द्रव्य या सामान्य वोध का अव्यवसाय द्रव्यायिकनय । (2) पर्याय या विशेष वोध का अध्यवसाय पर्यायायिकनय ।
नेगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन द्रव्यायिकनय है। ऋजुसूत्र, गन्द, समभिरून और एक भूत-ये चार पर्यायायिकनय हैं।
प्रथम चार नय अर्याश्रयी होने के कारण अर्थनय और अतिम तीन शब्दाश्रयी होने के कारण शब्दनय कहलाते हैं । यह नयो के विभाजन की दूसरी मर्यादा है।
नेगम नय संकल्पनाही होने के कारण तथा भूत-भावी पर्याय वस्तु मे नही रहते, मान मे रहते हैं अत वह शाननय भी है ।
नय के दो कार्य हैं अर्थवोव और अर्थ का प्रतिपादन । अर्थवोध की अपेक्षा से सभी नय ज्ञाननय हैं और अर्य-प्रतिपादन की अपेक्षा से सभी नय शब्दनय हैं।
हम द्रव्य के पारमायिक स्वरूप या उपादान का निरूपण भी करते है और उसका निरूपण पर निमित्त से होने वाले पर्यायो के द्वारा भी करते हैं। प्रथम निरूपण निश्चयनय है और दूसरा व्यवहारनय । 9 तत्वायरलोकवात्तिक, 1133
सर्व गदनयास्तेन, परार्थप्रतिपादने । સ્વાર્થપ્રારાને માતુરિમે જ્ઞાનનયા સ્થિતા |