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( 57 ) इसका समाधान प्रमाण और सूर्य आदि प्रकाशी द्रव्यो के आलोक मे खोजा जा सकता है । जैसे---
(1) प्रमाण का प्रमेय (वस्तु) के साथ अभेद सबध नही है फिर भी प्रमाण प्रमेय का निर्णय करता है । प्रमाण और प्रमेय मे भेद होने पर भी यदि ग्राह्य-ग्राहक सबध स्वीकार किया जा सकता है तो शब्द और वस्तु की भिन्नता होने पर उनमे वाम-वाचक सवध क्यो नही स्वीकार किया जा सकता ?
(2) सूर्य, प्रदीप आदि प्रकाशी पदार्थ घट आदि प्रकाश्य वस्तुओ से भिन्न होते हुए भी उन्हे प्रकाशित करते हैं । प्रदीप और घट मे भिन्नता होने पर भी यदि प्रकाश्य और प्रकाशक का सबध हो सकता है तो शब्द और वस्तु मे वाच्य-वाचक, सवध क्यो नही हो सकता ?
शब्द और वस्तु मे वाचक-वाच्यभाव सवध है इसलिए वाचक-शब्द का भेद होने पर वाच्य-र्य का भेद होना ही चाहिए ।
शब्द-भेद के आधार पर होने वाले अर्थ-भेद को इन रूपो मे समझा जा सकता है।
(क) यह मर्त्य है। (ख) यह पुरुष है।
ये दोनो मनुष्य के पर्यायवादी शब्द है, किन्तु भिन्न-भिन्न पर्यायो के वाचक होने के कारण से एकार्थक नहीं हैं । (क) यनुष्य मरधर्मा है इसलिए 'मय' है । यह शब्द मनुष्य की मरण
पर्याय का निर्वचन करता है। (ख) मनुष्य शरीर मे रहता है (पुरि शेत-पुरुष ) इसलिए 'पुरुष' है । यह
शब्द मनुष्य के शरीर-पर्याय का निर्वचन करता है ।
(क) यह भागीरथी का प्रवाह है । (ख) यह हैमवती का स्रोत है।
इन वाक्यो मे भागीरथी और हमवती--ये दोनो गगा के पर्यायवाची शब्द है, किन्तु भिन्न-भिन्न पर्यायो के वाचक होने के कारण ये एकार्थक नहीं हैं।
(क) गगा भगीरथ के द्वारा प्रवाहित की गई, इसलिए वह भागीरथी है । (ख) गगा का उत्स हिमालय पर्वत है, इसलिए वह हं भवती है ।