________________
(
53
)
ऋजुसूत्रनय
अनेक द्रव्यो के अाधार पर अभेद और भेद के अध्यवसाय उत्पन्न होते हैं, वैसे ही एक द्रव्य मे भी अभेद और भेद के अध्यवसाय उत्पन्न होते है। द्र०य की अविच्छित्ति के आधार पर अभेद का अध्यवसाय उत्पन्न होता है और कालक्रम से होने वाले पर्यायो के आधार ५. भेद का अध्यवसाय उत्पन्न होता है। अतीत और अनागत पायो की उपेक्षा कर प्रत्युत्पन्न पर्याय को स्वीकृति देने वाला अध्यवसाय ऋजसूत्रनय है। इसे विविध आकारो मे समझा जा सकता है।'
___1 क्रियमाणकृत एक वस्त्र का निर्माण किया जा रहा है। यह दीर्थकालीन किया है, किन्तु उसका जो अश प्रत्युत्पन्न है वह कृत है। यदि प्रत्युत्पन्न अश को कृत न माना जाए तो निमणि के अतिम क्षण मे भी उसे निर्मित नही माना जा सकता। प्रयम क्षण मे वस्त्र की साशत अनिष्पत्ति नहीं है। अत जितनी निष्पत्ति है उमे कृत मानना चाहिए। यह प्रत्युत्पन्न क्षण से उत्पन्न होने वाला अध्यवसाय है।
___2 निर्हेतुक विनाश उत्पन्न होना और नष्ट होना वस्तु का स्वभाव है । उत्पत्ति ही वस्तु के विनाश का हेतु है । वस्तु का स्वभाव ही ऐसा है कि पहले क्षण मे वह उत्पन्न होती है और दूसरे क्षण मे नष्ट हो जाती है । जो वस्तु उत्पत्ति-क्षरण के अनन्तर नष्ट न हो तो फिर वह कभी नष्ट नही हो सकती। घट पत्थर आदि किसी दूसरी वस्तु के योग से फूटता है विनष्ट होता है, यह स्थूल जगत् का नियम है । सूक्ष्म जगत मे यह नियम घटित नही होता ।।
3 निर्हेतुक उत्पाद जो उत्पन्न हो रहा है वह अपनी उत्पत्ति के प्रथम क्षण मे अपने कार्यभूत दूसरे क्षण को उत्पन्न नही करता । जो उत्पन्न हो चुका है वह दूसरे क्षण मे विनष्ट हो जाता है, इसलिए अपने कार्यभूत दूसरे क्षण को उत्पन्न नही करता। पूर्वक्षण की सत्ता उत्तरक्षण की सत्ता को उत्पन्न नहीं करती। अत उत्पाद का कोई हेतु नही है, वह स्वभाव से ही होता है।
4 वर्ण आदि पर्याय न्याश्रित नहीं होते कौश्रा काला नही है । वे दोनो अपने-अपने स्वरूप मे हैं काला रंग काला है और कौश्रा कोसा है। यदि काले रंग को कोश्री माना जाए तो भवरे आदि को भी काले होने के कारण कौया मानना
4
तत्वार्यवात्तिक, 1133, कसायपाहुड, भाग 1, पृ०० 223-243 । कसायपाहुड, भाग 1, पृष्ठ 227 पर उद्धत
जातिरेव हि भावाना, निरोघे हेतुरिष्यते ।। यो जातश्च न च वस्तो, नश्येत् पश्चात् स केन व ॥