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नयवाद : अनन्त पर्याय, अनन्त दृष्टिकोण
सह पोर व्यवहार नय
अस्तित्व द्रव्य का मामान्य गुण है। कोई भी द्रव्य ऐमा नही है जिसका अस्तित्व न हो । इस अस्तित्व गुण के आधार पर द्रव्यमान का अवत फलित होना है ।' उस अत का चरम शिखर है - मत्ता (महासत्ता या परम मामान्य)। इस सत्ता के आधार ५. विश्व की व्याख्या इन दो मे होगी 'विश्व एक है, क्योकि सत्ता सर्वत्र सामान्यरूप से व्याप्त है। 2
यह अहत ष्टि सग्रहनय है । अनेकान्त के व्याख्याकारों ने इस नय के आधार पर वेदान्त, सास्य आदि दर्शनों के विचारों का समन्वय किया है, किन्तु इसका अर्थ यह नही कि उन्होंने यह अद्धत या सामान्य को ष्टि वेदान्त या सास्य दर्शन से ऋण-५ मे प्राप्त की है। उन्होंने मता का निरपेक्ष-अद्वत मानने वाले दर्शनो के एकागी दृष्टिकोण की समालोचना की है । सत्ता तात्विक है और विशेष अतात्विक है । यह संग्रहनय का श्राभान है । सत्ता गुण की अपेक्षा मे विव एक हो सकता है, किन्तु द्रव्य मे मत्ता के अतिरिक्त अन्य गुण भी हैं। विशेष' द्रव्य का एक गुण है। उम मुख के आधार पर जब विश्व की व्याख्या करते है तव द्वैत फलित हो जाता है । मत्ता के दो-रूप हैं- द्रव्य और पर्याय ।
मामान्य द्रव्य का गुण है । उसके आधार पर होने वाला अध्यवसाय (निर्णय) अत का समर्थन करता है । विशेष भी द्रव्य का गुण है। उसके श्रापार पर होने वाला अध्यवसाय हूँत का समर्थन करता है। इस प्रकार द्र०य मे जितने गुण, धर्म या पर्याय हैं उतने ही उनके अध्यवसाय-निर्णयात्मक प्टिकोण हैं। इसीलिए 1 वृहद् नयचक्र, 246
मवारण सहावाण, अत्यित्त पुण सुपरमसभाप ।
વિસાવા તવે, પ્રચિત્ત મ4માવાય T 2 प्रमाणनयतत्वालोक, 7116 ।
વિશ્વમે મદ્રવિશેષાદ્વિતિ | 3 प्रमाणनयतत्वालोक, 7124
यत् मत् तद् द्रव्य पयार्यो वा ।