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हो जाते हैं । दोनो एक-दूसरे का निरसन करते हैं तो वे मिय्या हो जाते हैं और दोनो अपने-अपने विषय का प्रतिपादन करते हैं तो सत्य हो जाते है ।
2 नित्य और अनित्य का अविनाभाव
अनेकान्त का दूसरा नियम है નિત્ય ઔર સનિત્ય ના વિનામાવ નિત્ય अनित्य का अविनाभावी है और अनित्य नित्य का अविनाभावी है ।
चार्वाक का अभिमत है कि इन्द्रिय-जगत् ही सत्य है। आध्यात्मिक सत्य जैसा कुछ भी नही है | श्रात्मवादी दार्शनिको ने कहा आत्मा ही सत्य है, इन्द्रिय-जगत् मिय्या है | जैन ताकिको ने इसकी समीक्षा की। उन्होंने प्रतिपादित किया इन्द्रियजगत् असत्य नही है | सत्य वह है जिसमे अर्थक्रियाकारित्व होता है । इन्द्रियो का अर्थक्रियाकारित्व है, इसलिए वे असत्य नही हैं । उनके विषय भी असत्य नही हैं । સદ્ ા તક્ષા હૈં ત્લાવ, વ્યય શ્રઔર ધ્રૌવ્ય ।નિસમે પ્રક્રિયા ારિત્વ હૈં, વ उत्पन्न भी होता है, नष्ट भी होता है और ध्रुव भी रहता है । हम इन्द्रिय-जगत् को मत्य और आत्मा को श्रमत्य मानें, यह व्यवहार की भाषा हो सकती है किन्तु सूक्ष्म सत्य की भाषा नही हो सकती । हम केवल आत्मा को ही पारमायिक सत्य मानें और इन्द्रिय-जगत् को श्रमत्य मानें यह अध्यात्म की भाषा हो सकती है किन्तु वस्तु जगत् की भाषा नही हो सकती । श्रव्यात्म और तत्व मीमासा की भाषा एक नही होती । श्रव्यात्म की भाषा मे इन्द्रिय-विपय क्षणिक है, नरवर है । भौतिक जगत् से विरति उत्पन्न करने के लिए यह दृष्टिकोण सत्य हो सकता है किन्तु तत्त्वमीमासा मे यह सत्य नही है । वहा इन्द्रिय-विषय और आत्मा की वास्तविकता मे कोई अन्तर नही है | इस ग्रगुली के परमाणु जितने सत्य है, आत्मा भी उतना ही सत्य है | आत्मा जितना सत्य है, उतने ही इम अगुली के परमाण सत्य हैं । जो उत्पन्न और नष्ट होता है तथा ध्रुव रहता है, वह नव मत्य है | यह विलक्षणात्मक मत्व जैसा श्रात्मा मे है वैसा पुद्गल मे है और जैसा पुद्गल मे है वैसा आत्मा मे है । અવ્યાત્મ વે મૂલ્ય વસ્તુખ઼ાત્ મૂલ્ય વન ૫ તવ ક્ષત્તિા [ સિદ્ધાન્ત વિવાવાસ્પદ્ बन गया । अन्यया वह बहुत मूल्यवान् है | अध्यात्म के सभी चिन्तको ने उसका प्रतिपादन किया है । जेनो ने भी क्षरणमगुरता पर बहुत बल दिया है । उनकी वारह भावनाओ मे पहली अनित्य भावना है । इस भावना से अपने मन को भावित करने વાળા સાથ ‘સર્વેમનિત્યક્ इस सूत्र को बार बार दोहराता है, किन्तु यह आध्यात्मिक पक्ष है । जहा तात्त्विक पक्ष का प्रश्न है वहा जैन दर्शन को यह मान्य नही है कि पोद्गलिक जगत् अनित्य है और आत्मिक जगत् नित्य है । तत्त्व- मीमासा मे आत्मिक जगत् जितना नित्य है उतना ही पोदुगलिक जगत् नित्य है और पोदुगलिक जगत्
3 तत्वार्थ, 5/29
ઉત્પાવવ્યવઋવ્યયુક્ત સત્ ।