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कर सकते 1920 लम्बी अवधि तक प्रविष्ट ही नही हुए । वे बीच जो कुछ चल रहा था उसे और राजनीतिक परिस्थितियो ने परिषद् मे उपस्थित होकर अपने की सुरक्षा सभव नही रही । उस स्थिति मे समर्थन और दूसरो के सिद्धान्तो का निरसन शुरू किया । किन्तु उनकी निरसनपद्धति श्राक्षेपप्रधान नहीं थी। उन्होने अहिंसा की सुरक्षा और सत्य की सपुष्टि के लिए निरसन को समन्वय से जोड दिया । उनकी चिन्तनधारा का प्र प्रतिबिम्ब हरिभद्रसूरी की इस उक्ति मे मिलता है 127
जैन विद्वान् इस तर्क गीमासा की सीमा मे सीमा मे रहे और विभिन्न वादी-प्रतिवादियों के मौन भाव से देखते रहे । साम्प्रदायिक, सामाजिक ऐसी विवशता उत्पन्न कर दी कि तार्किको की सिद्धान्तो को तर्क - समर्पित किए बिना प्रस्तित्व जैन विद्वानो ने अपने सिद्धान्तो का
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"शास्त्रकारी महात्मान प्रायो वीतस्पृहा भवे । सत्त्वार्यसम्प्रवृत्ताश्च कथ तेऽयुक्तभाषिण ?"
'जितने शास्त्रकार है वे सब महात्मा हैं, परमार्थदृष्टि वाले है । वे मिय्या बात कैसे कहेंगे ?" प्रश्न उठा, फिर उनके दर्शनों मे इतना अन्तर क्यो ? तो हरिभद्र ने कहा 'उनके अभिप्राय की खोज करनी चाहिए कि उन्होने यह किस आशय से कहा है । हम तात्पर्य को समझे बिना विरोध-प्रदर्शित करते हैं, वह सत्योन्मुखी प्रयत्न नही है ।'
निरसन की पद्धति को समन्वय की दिशा देने का महान् श्रेय आचार्य समन्तभद्र और सिद्धसेन को है । वे अनेकान्त व्यवस्था के साथ-साथ समन्वय के भी सूत्रधार हैं | आचार्य सिद्धसेन ने साख्य, बौद्ध, वैशेषिक आदि दर्शनो की समीक्षात्मक समन्वय-पद्धति मे अद्भुत कौशल प्रदर्शित किया है। उन्होने लिखा है साख्य दर्शन द्रव्यार्थिक नय की वक्तव्यता है । वह कूटस्थनित्य की स्वीकृति है । बोद्ध दर्शन पर्यायार्थिक नय की वक्तव्यता है । वह क्षणिकत्व की स्वीकृति है । एक कूटस्थ नित्यवाद और दूसरा क्षणिकवाद | दोनो मे से एक मिथ्या होगा । या तो बौद्धो के क्षणिकवाद को मिथ्या मानना होगा या साख्यो के कूटस्यनित्यवाद को । दोनो सही नही हो सकते । वैशेषिक दर्शन सामान्य और विशेष - दोनो को मान्य करता है | अत वह द्रव्यायिक और पर्यायायिक दोनो नयो को स्वीकृति देता है । किन्तु वह सामान्य और विशेष दोनो को परस्पर निरपेक्ष और स्वतंत्र मानता है | इसलिए ये सब वक्तव्यताए एकागी होने के कारण मिय्या हैं । वोद्ध और
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सूयगडो, 1/1/50
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सय सय पससता, गरहता पर वय । जे उतत्य विउस्सति, ससारे ते विउस्सिया || शास्त्रवार्तासमुच्चय, 3 / 15 1