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( 27 ) केवलज्ञान दोनो सव तत्त्वो को प्रकाशित करने वाले हैं। दोनो मे इतना अन्तर है कि केवलज्ञान के द्वारा वे साक्षात् प्रकाशित होते है और स्याद्वाद के द्वारा वे परोक्षत प्रकाशित होते है ।23।
___2 जन तत्त्व-भीमासा के अनुसार मूल द्रव्य दो है- चेतन और अचेतन । प्रत्येक द्रव्य अनन्त-अनन्त स्वतंत्र इकाइयो मे विभक्त है । प्रत्येक इकाई मे अनन्तअनन्त पर्याय हैं । इन सब द्रव्यो, उनकी स्वतत्र इकाइयो और उनके पर्यायो की समष्टि का नाम पूर्ण सत्य है । अतवादी निरपेक्ष सत्य को मान्यता दे सकते है किन्तु द्वैतवादी उसे स्वीकृति नहीं दे सकते । इसीलिए जैन दर्शन ने अनेकान्तवाद के आधार पर सत्य की व्याख्या की। सत्य अनन्त पर्यायात्मक है और भाषा की शक्ति सीमित है। एक क्षण मे एक शब्द के द्वारा एक ही पर्याय का प्रतिपादन किया जा सकता है। पूरे जीवन मे भी सीमित पर्यायो का ही प्रतिपादन किया जा सकता है, श्रत पूर्ण सत्य की व्याख्या नहीं की जा सकती, सत्यारा की व्याख्या की जा सकती है।
स्पिनोजा ने द्र०५ को अनिर्वचनीय बतलाकर समस्या से मुक्ति पाने का प्रयत्न किया है 124
अतवादी भारतीय दर्शनो ने भी सत्य को अनिर्वचनीय माना है । जन ताकिको ने द्रव्य की अनिर्वचनीयता को मान्यता नही दी । उनका तर्क है कि द्रव्य यदि अनिर्वचनीय है तो उसका निर्वचन नही किया जा सकता और उसका निर्वचन किए विना अनिर्वचनीयता भी सिद्ध नहीं होती। अत द्रव्य सर्वथा अनिर्वचनीय नही है और सर्वथा निर्वचनीय भी नही है। द्रव्य के अनन्त पर्याय युगपत् नही कहे जा 23 प्राप्तमीमासा, 105
स्यादवादकवलशाने, सर्वतत्वप्रकाशने ।
भेद साक्षादसाक्षाच्च, ह्यपरत्वन्यतम भवेत् ।। द्रव्य निर्गुण और अनिर्वचनीय है । हमारी वाणी और बुद्धि की पहुच द्रव्य तक नही है। बुद्धि द्रव्य की ओर सकेत करती है, किन्तु उसे पूर्णरूप मे नही जान सकती। यह निर्विकल्प अनुभूति का विषय है । गुण बुद्धि के विकल्प हैं। किसी वस्तु का गुण बताना उस वस्तु को उस गुण द्वारा परिच्छिन्न करना है। किसी वस्तु का निर्वचन करना उसे उस अश मे सीमित करना है । सीमा या परिच्छेद का अर्थ है- अन्य गुणो का निषेध । जैसे किसी वस्तु को श्वेत कहना उसमे काले, पीले, लाल आदि गुणो का निषेध करना है । द्रव्य अपरिच्छिन्न है, अत निर्गुण और अनिर्वचनीय है ।
[पाश्चात्य दर्शन, पृष्ठ 109 ]
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