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( 124 ) व्याप्ति या अविनामाव के नियमों का निर्धारण मापेक्षता के सिद्धान्त पर ही होता है। स्यूल जगत् के नियम सूक्ष्म जगत् मे सटित हो जाते हैं। इसीलिए विश्व की व्याख्या दो नयो से की गई। वास्तविक या कम मत्य की व्याया निश्चय नय से और स्थूल जगत् या दृश्य सत्य की याया व्यवहार नय में की गई। प्रात्मा कर्म का कर्ता है यह सभी पास्तिक दीनो की स्वीकृति है, किन्तु यह स्थूल सत्य है और यह व्यवहार नय की भा५। है। निश्चय नय की भाषा यह नही हो सकती। वास्तविक सत्य यह है कि प्रत्येक द्रव्य अपने स्वभाव का ही का होता है। प्रात्मा का स्वभाव पतन्य है, अतः वह पतन्य-पर्याय नाही कर्ता हो सकता है। कर्म पीद्गलिया होने के कारण विभाव हैं, विजातीय हैं । इमलिए आत्मा उनका कत्ता नहीं हो सकता । यदि प्रात्मा उनका पात हो तो वह कर्म-चक्र से कभी मुक्त नहीं हो सकता । अत 'आत्मा फर्म का पाना है' यह भाषा व्यवहार सापेक्ष भाषा है।
हम किसी को हल्का मानते हैं और किसी को भारी, किन्तु हल्कापन और भारीपन दे-सापेक्ष हैं । गुरुत्वाकर्षण की सीमा मे एक वस्तु दूसरी वस्तु की अपेक्षा हल्की-भारी होती है । गुरुत्वाकर्षण की मीमा का अतिक्रमण करने ५. वस्तु भारहीन हो जाती है।
हम वस्तु की व्याख्या लम्बाई और चौडाई के रूप में करते है । मूर्त वस्तु के लिए यह व्याख्या ठीक है । अमूर्त की यह व्याल्या नही हो सकती। उसमे लम्बाई और चौडाई नहीं है। वह आकाश-देश का अवगाहन करती है पर स्थान नहीं रोकती। अत. लम्बाई और चौडाई भू-द्रव्य-मापेक्ष है । उता के रूप में विद्यमान ऊर्जा को गति में बदल देने पर उसकी मात्रा समान रहती है। यह उज्ाता-तिविज्ञान (योडायनेमिक्स) का पहला सिद्धान्त है । इसका दूसरा सिद्धान्त यह है कि किसी यत्र मे निक्षिप्त ऊर्जा की मात्रा मे कमी हो जाती है। वह कमश क्षीण होती जाती है। इसलिए किसी ऐसे यन्त्र का निर्माण सम्भव नही है जिसमे ऊर्जा का निक्षेप વિયા ના આર વદ અને દારા સવા અતિગીન વિના રહે છે વાનિકો દ્વારા यह सम्भावना व्यक्त की गई है कि हमारे देश और काल मे व्यवहार में प्रयुक्त कर्जा की अक्षीयता निप्पन नही हुई है। ५२ सम्भव है किसी देश और काल से वह क्षीण न हो और उस देश-काल मे यह सम्भव हो सकता है कि एक बार पत्र मे ऊर्जा का निक्षेप कर देने पर वह सदा गतिशील बना रहे । इन कुछ उदाहरणो से हम समझ सकते है कि विशिष्ट देश और काल की व्याप्तिया सवत्र लागू नहीं होती। इसलिए उनका निवारण सापेक्षता के सिद्धान्त के आधार पर किया जाता है।
साख्यिकी (statistics) और भौतिकविजान (Physics) के अनेक सिद्धान्तो की व्याख्या सापेक्षता के सिद्धान्त से की जा सकती है।
1 देखें पाचवा प्रकरण 'स्यादवाद और सप्तभनी न्याय ।'