________________
(
106
)
प्राचार्य सुवन्धु ने हेतु को रूप्य माना और दिड नाग ने उसका विकास किया। उनके अनुसार हेतु मे पक्षधर्मत्व, सपक्षमत्व और विपक्षासत्व ये तीन लक्षण पाए जाते हैं
1 पक्षवर्मत्व हेतु पक्ष मे होना चाहिए । 2 सपक्षसत्व हेतु सपक्ष अन्वय ६८/न्त मे होना चाहिए । 3 विपक्षासत्त्व हेतु विपक्ष मे नही होना चाहिए ।
जनताकिको ने हेतु के इस रूप्य लक्षण का निरसन किया। उन्होने 'अन्ययानुपपत्ति' या 'अविनामाव' को ही एकमात्र हेतु का लक्षण माना 110 स्वामी पात्रकेसरी ने विलक्षणकदर्शन' अन्य मे हेतु के त्रस्य का निरसन कर अन्ययानुपपत्ति लक्षण हेतु का समर्थन किया। उनका प्रसिद्ध लोक है ।
'अन्ययानुपपनत्व, यत्र तत्र ये किम् ? नान्यथानुपपन्नत्व, यत्र तत्र त्रये किम् ?
जहा अन्यथा-अनुपपत्ति है पहा हेतु को रूप्यलक्षण मानने से क्या लाभ ? जहा अन्यथा-अनुपपत्ति नही है वहा हेतु को रूप्यलक्षण मानने से क्या लाभ ?
हेतु के लिए पक्षवर्मत्व आवश्यक नही है । रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा क्योकि कृत्तिका नक्षत्र का उदय हो चुका है। इस हेतु मे पक्षधर्मत्व नहीं है । कृत्तिका के उदय और महूत के पश्चात् होने वाले रोहिणी के उदय मे अविनाभाव है, पर कृत्तिका का उदय रोहिणी नक्षत्र का उदय होगा' इस पक्ष मे नही है । अत. पक्ष-. धर्मत्व हेतु का अनिवार्य लक्षण नहीं है ।
शब्द अनित्य है क्योकि वह श्रावण है श्रोत्र का विषय है इस अनुमान मे कोई पक्ष नहीं है। जो-जो सुनाई देता है वह मारा का सारा शब्द है, इसलिए मपक्ष को कोई अवकाश ही नहीं है। सुनाई देने के कारण शब्द अनित्य है और जो सुनाई देता है वह शब्द है-इममे द और श्रावणत्व की अन्तव्याप्ति है। इसका कोई दृष्टान्त या समान पक्ष नही हो सकता। पहिव्याप्ति मे सपक्ष हो सकता है और उसका उपयो। इसलिए किया जाता है कि किमी दृष्टान्त के माध्यम से हेतु का अविनामा बताया जा सके, किन्तु उन वहिाप्ति (टान्त या सपक्ष) के
आधार पर हेतु गमक नहीं होता। 10 न्यायावतार, श्लोक 21 :
अन्यवानुपपनत्व हतोलक्षमीरितम् ।