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( 102 ) धूम और अग्नि मे जमे व्याप्ति-सबंध है, वैसे लाद और अर्थ मे व्याप्तिसवध नही है। उनमें भेदाभेद का मवध है। यदि भन्द अर्य से सर्वथा अभिन्न हो, उनमे तादात्म्य संबंध हो तो अग्नि अर्थ और अग्निगद की प्रिया भिन्न नहीं हो सकती। फिर अग्नि शब्द के उच्चारणमात्र से दहन का क्रिया हो जाएगी। ऐसा नहीं होता, इसलिए जाना जाता है कि शब्द और अर्थ में व्याप्ति सवध नहीं है। यदि शब्द अर्थ से सर्वथा भिन्न हो तो उनमे पाय-वाचक-संबंध नहीं हो सकता। ५८ २१८८ से ५८ पदार्य का वोध इसीलिए होता है कि गाद के प्रतिपादन पर्याय और अर्थ के प्रतिपाद्य पर्याय मे एक सवध स्थापित है।
___घ८ द से घट पदार्य का ही बोध होता है, घट से भिन्न पदार्थ का बोध नहीं होता। इसका नियमन 'सकेत' करता है। शब्द और अर्य का संबंध नैसगिक नही है। जिस अर्थ के लिए जिस आद का प्रयोग मनुष्य हा निर्धारित किया जाता है वह २००६ उम अर्थ का वाचक हो जाता है। इसलिए शब्द और अर्य का मवध ऐच्छिक है। इसीलिए विभिन्न मूखडो मे एक ही पदार्य के अनेक शब्द वाचक है । यदि शब्द और अर्थ का मवध नैसर्गिक होता तो ससा की एक ही भाषा होती और एक अर्थ के लिए स्वभावत एक ही वाचक होता।
सापेक्ष सिद्धान्त के आवार ५९ स्फोट की व्याख्या की जा सकती है। भाषा पौद्गलिक है । समूचे आकाश मडल मे मापा-वर्गमा के पुद्गल-स्कर फैले हुए हैं और वे सदा फैले हुए रहते हैं । कोई भी मनुष्य वोलता है तो उन भा५/-वर्गणा के पुगल-स्कयो को ग्रहण किए बिना नहीं बोल सकता। हमारी वोलने की प्रक्रिया यह है कि हम सर्व प्रथम शारीरिक प्रयत्न के द्वारा भापा-वर्गरणा के पुद्गल-स्कयो को ग्रहण करते हैं, फिर उन्हें भाषा के रूप मे परिणत करते हैं और उसके बाद उनका विमर्जन करते हैं । यह विसर्जन का क्षण ही शब्द है और ही हमे सुनाई देता है । विसर्जन-क्षरण से पहले शब्द अगद होता है और उस क्षण के बाद भी द अगर हो जाता है । विसर्जन-क्षण मे होने वाली वर्णवनि क्षणिक और अनित्य होती है । भापा-वर्गणा के पुद्गल-स्कयो को मतति-प्रवाह-५ मे नित्य माना जा सकता है और उनकी स्फोट से तुलना की जा सकती है।
स्मृति मे सस्कार, प्रत्यभिज्ञा मे एकरप और साय, तर्क मे अविनाभाव संवय और श्राम मे अभिधेय-अर्थ परोक्ष होते हैं, इसलिए ये सब परोक्ष प्रमाण के अवान्तर विभाग है।
1 अवग्रह से अनुमान तक कार्य-कारण का संबंध प्रतीत होता है । फिर पारणा को प्रत्यक्ष श्री स्मृति आदि को परोक्ष मानने का क्या कारण है ?