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________________ बारह व्रत वर्णन। परिग्रहको परिमाण करि, नौ सकल ही दम्भ ||८|| लोभ लहरि मेटी जिनौ धरयो धर्म संतोष । ते श्रावक निरदोष हैं, नहीं पापको पोष ।। ८६ ॥ क्षेत्र आदि दस संगको, कियो तिने परिमाण । राख्यौ परिग्रह अलप ही, तिन सम और न जाण ॥१०॥ कयौ परिग्रह दस बिधा, वहिरङ्गा जे वीर । तिनके भेद सुनू भया, भाखें मुनिवर धीर ॥ ११ ॥ चौपाई-क्षेत्र परिग्रह क्षेत्र बखान, जहा उपजे धान्य निधान । वास्तु कहावै रहवा तना, मन्दिर हाट नौहरा वना ॥२॥ हस्ती घोटक ऊंटरु आदि, गाय बलध महिषी इत्यादि। होय राखगों जो तिरजंच, चौपद परिग्रह जानि प्रपंच ॥६॥ द्विपद परीग्रह दासी दास, पुत्र कलत्रादिक परकास । धान्य कहावै गेहूं आदि, जीवन जनको अन्न अनादि ।४। धन कनकादिक सबहो धात, चिंतामणि आदिक मणि जात । चौवा चन्दन अगर सुगन्ध, अतर अरगजा आदि प्रबंध तेल फुलेल घृतादिक जेह, बहुरि वस्त्र सब भाति कहेह । ये सब कुप्य परिग्रह कहे, संसारी जीवनितें गहे ॥१६॥ भोजन नाम जु वासन होय घातु पषाण काठके कोय । माटी आदि कहा ला कहैं, साधन भाजनके सहु गहें । आसन वैसनके बहु जान, सिंघासन प्रमुखा परवान । गद्दी गिलम आदि जेतेक, त्यागौ परिग्रह धारि विवेक ॥८॥ सज्या नाम सेजको कयौ, भूमिशयन मुनिराजनि गौ। ए दसधा परिमह व्य रूप, कैइक अड़ कैइक चिद् प ॥ ६ ॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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