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________________ NAAMAN बारह व्रत वर्णन। घाले तिल भस्म जु होई, यह परतछि देखौ कोई । तैसे ही लिङ्ग करि जीवा, नासें भग माहिं अतीवा ॥८॥ तातें यह मैथुन निंद्या, याको त्यागे जगवंद्या। धन धन्निभाग जाको है, जो मैथुनते जु वच्यौ है ॥८१॥ जे बाल ब्रह्मत्रत धारें, आजनम न मैथुन कारे। तिनके चरननकी भक्ती, दे भव्यजीवकू मुक्ती ।।८।। हमह ऐसे कब होहैं, तजि नारी व्रत करि सोहैं। या मैथनमे न भलाई, परतछ दीखै अघ भाई ।।८।। अपनीहू नारी त्यागें, जब जिनवर के मत लागे । यह देहहु अपनी नाहीं, चेतन बैठो जा माहीं ।।८।। तौ नारी कैसे अपनी, यह गुरु आज्ञा उर खपनी। या विधि चितवै मन माहीं, कब धर तजि बनकू जाहीं ॥८५॥ जबलों बलवान जु मोहा, तबलो इह मनमथ द्रोहा । छाडै नहिं हममों पापी, नाते ब्याही त्रिय थापी ।।६।। जब हम बलवान जु होहै, मारे मनमथ अर मोहैं। असमर्था नारी राखें ॥८॥ यह भावन नित भावतो, घर माहि उदाम रहतौ । जैसें परघर पाहुणियो, तैसे ये श्रावक गिणियो ।।८८|| वह तौ घर पहुंचौ चाहै, यह शिवपुरको जु उमा है। अति भाव उदासी जाको, निज चेतनमें चित ताको ।। छाडे सब राग रु दोषा, धारै सामायक पोषा। कबहू न रत्त है मगन त्रियासों न रमे ।। मुख मादि विकारा जे हैं, छाड़े नर ज्ञानी ते हैं।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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