________________
बारह व्रत वर्णन। ते सब परधन हरणतें, और न कोई बखान ॥ भरा आचोरिज तीसरो, सब वृत्तनिमें सार । जो याको धारै बूती, सो उधरै संसार ।। याकी महिमा प्रमु कहें, जो केवल गुणरूप । पर गुणरहित निरजना निर्गुण निर्मलरूप ॥ कहें गर्णिद मुनिन्दवर, करें भव्य परमान । जे धारे ते पावही; पूरणपद निर्वान ।। अल्पमती हम सारिखे, कहे कौन विधि वीर । नमस्कार या वृत्तकों, धारें धर्माधीर ।। जे उरझे ते या बिना, इह निश्चै उर धारि ।
सुरझे ते या करी, यह बूत है अघहारि ॥ दया सत्य संतोष अर, शीलरूप है एह । उधरै भवसागर थकी धरै या थकी नेह ।। दया सत्य अस्तेयकौं करि बन्दन मन लाय। भाषों चौथो शीलत्रत जो इन बिगर न थाय ॥
इति अचौर्याणुप्रत वर्णन । प्रणमि परम रस शातिको, प्रणमि धरम गुरुदेव ।
बरणों सुजससुशीलको, करि सारदकी सेव ॥३०॥ शीलतको नाम है, ब्रह्मचर्य सुखदाय । जाकरि चर्या ब्रह्ममें, भवबन भ्रमण नशाय ।। ब्रह्म कहा जीव सब, ब्रह्म कहावें सिद्ध । बारूप कैवल्य जो, ज्ञान महा परसिद्ध । प्रमचर्य सो चूत ना, न परघूम सो कोय।