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________________ जंन क्रियाकोष। राजाकों हासिल गोपै, राजाकी आणि जु लोपै । इह तीजो दोष निरूपा, त्यागौ व्रतधारी अनूपा। देवेके तोला घाटै, लेवेके अधिका बाटे। इह अतिचार है चौथो त्यागौ शुभमतिते थोथो । बधि मोलमें घाटो मोला, मेले है पाप अतोला । इह पंचम है अतिचारा, त्यागें जिन मारग धारा॥ ए अतीचार गुरु भाखे, जैनी जीवनिने नाखे। चोरी करि दुरगति होई, चोरी त्यागे शुभ सोई॥ चोरी सजि अंजनचोरा, तिरियो भवसागर पोरा । लोह महामन्त्र तप गहिया, दावानल भववन दहिया ॥ अंजन हूमौ जु निरंजन, इह कथा भव्य मनरजन । बहुरी नृप श्रेणिक पुत्रा, है वारिषेण जगमित्रा ।। कर परधनको परिहारा, पायौ भवसागर पारा। चोरी करि सापस दुष्टा, पञ्चा गन माधनि पुष्टा ॥ लहि कोटपालकी त्रासा, मरि नरक गयौ दुख भाषा। दलिदरको मूल जु चोरी, चोरी तजि अर तजि जोरी॥ सब अघ तजि जिनसो जोरी, बिनऊ भैय्या कर जोरी। चोरी तजिया शिव पागै, यह महिमा श्रीजिन गानों ॥ चोरी भव भव भटके, चोरीते सब गुन सटकै। जो बुधजन चोरी त्यागै, सो परमारथ पथ लागे॥२०॥ दोहा-परधनके परिहार बिन, परम धाम नहिं होय । भये पार ते तीसरे, बृत्त बिना नहिं कोय । जे बढ़े नर नरकमें, गये निगोब मजान ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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