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________________ m बारह व्रत वर्णन बोलौ हिय मित बानीसदा, संसय बानि बोलि न कदा। सत्य प्रशस्त दया-रस भरी, पर उपगार करन शुभ करी।। अधिरुष अव्याकुलता लिये, बोलहु करुणा धरिके हिथे। कबहु ग्रामणी बचन न लपौ, सदा सर्वदा श्रीजिन जपो।। अपनी महिमा कबहु न करो, महिमा जिनवरकी उर घरौ। जो शठ अपनी कीरति करै, सो मिथ्यात सरूपजु धरै ।। १०॥ निन्दा परकी त्यागहु भया, जो चाहो जिनमारग लया। अपनी निन्दा गहरी करौ, श्रीगुरुपै तप बूत आदरौ॥ पापनिको प्रायश्चित्त लेह, माया मच्छर मान तजेह । होवे जहा धर्मको लोप, शुभ किरिया हौवै फुनि गोप ॥ अर्थ शास्त्रको है विपरीत, मिथ्यानमकी है परतीति । तहां छाडि शंका प्रतिबुद्ध, भाषे सुत्र बचन अविरुद्ध । इनमें शंका कबहुन करहू, यही बुद्धि निश्चय उर धरहू । सत्य मूल यह आगम जैन, जैनी बोले अमृत बैन । चार्वाक वोधा विपरीत, तिनके नाहिं सत्य परतीति । कौलिक पातालिक जे जानि, इनमें सत्य लेश मति मानि ।। सत्य समान न धर्म जुकोय, बडो धर्म इह सत्य जु होय । सत्यथकी पावै भव पार, सत्यरूप जिन मारग सार ।। सत्य प्रभाव शत्रु हूं मित्र, सत्य समान न और पवित्र । सत्य प्रसाद अगनि ह शीत, सत्य प्रसाद होय जगजीत ।। सत्य प्रभाव भृत्य है राव, अल है थल धरिया सत भाव । सुर हे किंकर बनपुर होय, गिरि है घर सम सतकार जोय ।। सर्व माखरहरि मृग रूप, बिल समपाताल विरूप
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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