SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैन-क्रियाकोष । कोऊ करै शस्त्रकी घात, शस्त्र होई सो अंबुन पात ॥ हाथी दुष्ट होय सब स्याल, विष हूँ अमृतरूप रसाल । कठिन मुगम है सत्य प्रभाव, दानव दीन होय निरदाव ॥२०॥ सत्य प्रभाव लहै निज ज्ञान, मत्य धरै पावै वर ध्यान । सत्य प्रमाद होय निरवाण, सत्य बिना न पुरुप परवाण ॥ सत्य प्रसाद वणिक धन देव, राजा करि पाई बहु सेव । इह भव पर भव सुखमय भयौ, जाको पाप करम सब गयो । झूठ थकी वसु राजा आदि, पर्वत विप्र सत्यघोषादि । जग देवादिक वाणिज घने, गये दुरगनि जाय न गिनें ।। सत्य दयाको रूप न दोय, दया बिना नहिं सत्यजु होय। सत्य तने द्वय भेद अछेद, विवहारो निश्चय निरखेद ॥ निश्चै सत्य निजातम बोध, विवहारो जिन बचन प्रबोध । सत्य बिना सब बूत नप बादि, सत्य सकल सूत्रनमे आदि ।। सत्य प्रतिज्ञा बिन यह जीव, दुरगति लहै कहे जगपीव । सूकर कूकर वृक चडार, घू घू स्याल काग मार्जार ।। ताग आदि जे जीव विरूप, लापर सबते निर्दय रूप। सब बुरा महा असपर्म, लापरका लखिये नहिं दर्श ।। चुगली-साचहु झूठहि जानि, चुगल महा चंडाल समान । चुगली उगलि मुखते जबै, इह भवपर भव खोये तबै ।। सत्य हेत धारौ भवि मौन, सत्य बिना सब संजम गौन। थोरा कालहु कारण सत्य, मन बच तन करि तजौ असत्य। मुनिके सत्य महाबूत होय, गृहिके सत्य अणुबूत होय। मुनिके सत्य गहें के जैन, बचन निरूपें अमृत पेन ॥३०॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy