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बारह व्रत वर्णन । गई नरकमे पुत्र हति, मानुष अन्म विगारि ॥ हिंसाके अपराधतें, पापी जीव अनन्त । गये नरक पाये दुखा, कहत न आवे अन्त ।। मे निकसै भव कूपते, ते करुणा उर धार । जे बूडै भव कूपमे ते सब हिंसाकार ॥ महिमा जीव दया यनी, जानें श्रीजगदीश। गण धरहू कथि ना सके,जे चउ ज्ञान अधीश ।। कहि न सके इन्द्रादिका, कहि न सकें अहमिंद्र। कहि न सके लोकातिका, कहि न सके जोगिन्द्र ॥ कहि न सकें पातालपति. अगणित जीभ बनाय। सो महिमा करुणा तणी हम पै बरनिन जाय ॥॥ दया मालको आसरो, और सहाय न कोय । करि प्रणाम करुणा व्रते, भाषो सत्य जु सोय ॥
इति दयाबत निरूपण। हिंसा है परमादते, अर प्रमादतें झूठ।
ताते तजी प्रमादकू, देय पापसों पूठ ॥ चौपाई-श्री पुरुषारथ सिद्धि उपाय, प्रन्थ सुन्या सब पाप लुभाय ।
अहं द्वादस व्रत कहे अनूप, सम दम यम नियमादि स्वरूप ।। सम जु कहावे समता भाव, सम्यकरूप भवोदधि नाव । दम कम मन इन्द्रिय रोध, जाकर लहिये केवल बोध ।। आवो जीव बरत यम कयो, अवधिरूपसों नियम जु लयो। ऐसे भेद जिनागम कहै, निकट भव्य है सो ही गहै ॥ वामें सत्य कयौ घउ मेद, सो सुनि करि तुम घरहु अछेद ।