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जैन-क्रियाकोष । यमनियमादिक बहुत जे, भाचे श्रीजिनराय । ते सहु करुणा कारणे, और न कोई उपाय ॥२०॥ बिना जैन मत यह दया, दूजे मत दीखै न । दया मई जिनदास है, हिंसा विधि सीखै न ।। दया दया सब कोउ कहै, मर्म न जाने मूर । अणछान्यू पाणी पिवै, तेहि दयातें दूर ॥ दया भली सबही रटै, भेद न पावै कोय । बरते अणगाल्यौ उदक, दया कहा ते होय ।। दया बिना करणी वृथा यह भाषे सब लोक । न्हावै अणगाले जलहि बाधै अपके थोक ।। छाण्यूजल घटिका जुगल पाछे अगल्यौ होय । बिना जैन यह बारता और न जाने कोय । दया समान न धर्म कोउ इह गावे नरनारि । निशा माहि भोजन करें, जाहि जमारो हारि ।। दया जहां ही धर्म है, इह जाने संसार । पै नहिं पावै भेदकों, भक्ष अभक्ष विचार ॥ दया बडी सब जगतमे, धागे नाहिं तथापि । परदारा परधन हरै परै नरकमें पापि ।। दया होय तौ धर्म ह, प्रगट बात है एह । तजै न तौहू द्रौह पर, धरै न धर्म सनेह ।। प्रत्त करै फुनि मूढधी, अन्न त्यागि फल खाय । कंद मूलभक्षण करै, सो व्रत निह फल जाय ॥३०॥ दया धर्म कीजे सदा, इह अर्षे जग सर्व।