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________________ जंन - क्रियाकोष | अर्थ -- जिनके अष्ट मद नाहीं, तीन मूढता नाहीं, पट मनाय वननाहीं, शंकादि अष्ट मल नाहीं, सप्त व्यसन नाहीं, सप्त भय नाहीं, पंच अतीचार नाहीं, ए चवालीस नाहीं ते सम्यक दृष्टी कहे । दोहा-तके मल जु मल गुण, सम्यक सबको मूल । कयौ मूलगुणको सुजस, सुनिव्रत विधि अनुकूल । इति क्रियाको मूलगुणनिरूपण । ३६ बारह व्रत वर्णन दोहा - द्वादस प्रतनिकी सुविधि, जा विधि भाषी वीर । सो भाषो जिनगुन जपी, जे धारें ते धीर ॥ द्वादस प्रत माहे प्रथम, पंच अणुव्रतसार । तीन अणुव्रत चारि फुनि, शिक्षावृत आचार । हिंसा मृषा अदलधन, मैथुन परिग्रह साज । एक देश त्यागी गृही, सब त्यागी रिषिराज ॥ सब व्रतनिके आदिही, जीवदया - व्रतसार । दया सारिसौ लोकमें, नहिं दूजौ उपगार || सिद्ध समान लख्यौ जिने, निश्चय आतमराम । सकल मतमा आपसे, लख चेतना -धाम ॥ ते सब जीवनकी दया, करें विवेकी जीव । मन वच तन करि सर्वको शुभ वाछे जु सदीव ॥ सुखसो जीवौ जीव सहु, क्लेश कष्ट मति होह । तजौ पापको सर्वही, तजौ परस्पर द्रोह ॥ काहूको हु पराभवा, कबहु करौ मति कोइ ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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