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जंन - क्रियाकोष |
अर्थ -- जिनके अष्ट मद नाहीं, तीन मूढता नाहीं, पट मनाय वननाहीं, शंकादि अष्ट मल नाहीं, सप्त व्यसन नाहीं, सप्त भय नाहीं, पंच अतीचार नाहीं, ए चवालीस नाहीं ते सम्यक दृष्टी कहे । दोहा-तके मल जु मल गुण, सम्यक सबको मूल ।
कयौ मूलगुणको सुजस, सुनिव्रत विधि अनुकूल । इति क्रियाको
मूलगुणनिरूपण ।
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बारह व्रत वर्णन
दोहा - द्वादस प्रतनिकी सुविधि, जा विधि भाषी वीर । सो भाषो जिनगुन जपी, जे धारें ते धीर ॥ द्वादस प्रत माहे प्रथम, पंच अणुव्रतसार । तीन अणुव्रत चारि फुनि, शिक्षावृत आचार । हिंसा मृषा अदलधन, मैथुन परिग्रह साज । एक देश त्यागी गृही, सब त्यागी रिषिराज ॥ सब व्रतनिके आदिही, जीवदया - व्रतसार । दया सारिसौ लोकमें, नहिं दूजौ उपगार || सिद्ध समान लख्यौ जिने, निश्चय आतमराम । सकल मतमा आपसे, लख चेतना -धाम ॥ ते सब जीवनकी दया, करें विवेकी जीव । मन वच तन करि सर्वको शुभ वाछे जु सदीव ॥ सुखसो जीवौ जीव सहु, क्लेश कष्ट मति होह । तजौ पापको सर्वही, तजौ परस्पर द्रोह ॥ काहूको हु पराभवा, कबहु करौ मति कोइ ।