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________________ रसोई आदि क्रियामोंका वर्णन। ५ षट अ अनायतनाको तजिवी, ए पचास महागुण भजियो। पर सनिवौ तिन भय सप्ता, निरभै रहिवौ दोष अलिमा १०० इह भव पर भवको भय नाहीं मरद वेदना भय न धराही । हमरौ रक्षक कोऊ नाहीं, इह संस नाहीं घट माहीं। सबको रक्षक आयु जु कर्मा, कै जिनवर जिनवरको धर्मा। और न रक्षक कोई काको, इह गुरु गायौ गाढ जु ताकों । अर नहिं चोर तनो भय जाकों, अपनो निजधन पायौ ताकों। चिदधन धन चोरयौ नहिं जावे, तातें चित्त अडोल रहावै ॥ अर नहिं अकस्मान भय कोई,जिन सम लखियौ निजतन जोड़ी चेतन तत्व लब्यौ अविनासी, ताले ज्ञानी है सुखरासी॥ काहूको भय तिनकों नाहीं, भय रहिता निरबैर रहाही। सप्त भया त्यागे गुण होई, सप्त विसन तजियो शुभ जोई॥ सप्त सप्त मिलि चौदा गुन ए,मिले पचीसा गुणता जु लए। पञ्च प्रतीचारनकों टारौ, शका काक्षा कबहू न धारौ। नहिं दुरगंछा भाव कही, नहिं मिथ्यात सराह करही। नहीं स्तवन मिथ्यादृष्टीको, यह लक्षण सम्यकदृष्टीको॥ पञ्च अतीचारनकू त्यागा, सो है पञ्च गुणा बडभागा। मिलि गुणसाली चौवालीमा, गुणा होहिं भार्षे जगदीसा।। इनकूधारै सम्यकती सो, भवभय तजि पावे मुक्ती सो। ए गुन मिथ्यातीके नाही, आतमज्ञान न मिथ्या माहीं॥ उक्तञ्च गाथा । मयमूढमणायदणं, सकाइवसण्णमयमईया। एसिं चउदालेदे, प संति ते हुंति सट्टिी ॥ ११॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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