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जन-क्रियाकोष। man annowwwwwwwww noon muwww
वेसरी छन्द। ए दुरगति दाता न कदेही, शिव कारण है देह विदेही ।। सम्यक सहित महाफल दाता, सब गुननिको सम्यक ताता। समकितसों नहिं और जूधर्मा, सकल क्रिया सम्यक पर्मा । आके भेद सुनो मन लाए, जाकरि आतम तत्व लखाए । भेद बहुत पर द्वै बड़ भेदा, निश्चै अर विवहार सुबेदा ॥ निश्चय सरधा निज आतमकी, रुचि परतीति जु अध्यातमकी सिद्ध समान लखौ निज रूपा, अतुल अनंत अखाड अनूपा । अनुभव-रसमें भीग्यो भाई, धोई मिथ्यामारग काई। अपनो भाव अपुनमे देखौ, परमानन्द परम रस पेखो। तीन मिन्यात चौकड़ी पहली, तिन करि जीवनिकी मति गहली मोह प्रकृति है अट्ठाबीमा, सात प्रबल भाणे जगदीसा ॥७॥ सात गये सबहि नमि जावें सर्व गये केवल पद पावें ॥ उपशम क्षय-उपशम अथवा क्षय, सात तनों कीयो तनि सब भय ये निश्चय समकितको रूपा, उपजै उपशम प्रथम अनुपा ।। सुनि सम्यक व्यवहार प्रतीता, देव अठारह दोष बितीता। गुरु निरग्रन्थ दिगम्बर साधू, धर्म दयामय तत्व अराधू ।। तिनकी सब दिढ़ करि धारे, कुगुरु कुदेव कुधर्म निवारे । सबनि तत्वको निश्चय करिबौ, यह विवहार सुसम्यक धरिबौ गीव अजीबा आस्रव बंधा, संवर निर्जर मोक्ष प्रबन्धा ।। पुण्य पाप मिलि नव ए होई, लखें जथारथ सम्यक सोई ।। ये हि पदारथ नाम कहावै, एई तत्व जिनागम गावै । नव पदार्थमे जीव अनन्ता, जीवन माहि आप गुणवंता ।।