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जैन-क्रियाकोष। तो वह पावै उत्तमलोका, सबकों जीवदया सुखथोका ॥ त्यागौ चोरी जो सुख चाहौ, ठग विद्या तजि ल्यो भविलाहो। परधन भूले बिसरे आयौ, राखौ मति यह जिन श्रुत गायौ ॥२० लूटि लेहु मनि काहूको धन, परधन हरबेंको न धरौ मन । चुगली करन, लुटावौ काकों, छाड़ों भाई अन्यरमाकों। काहूकी न धरोहरि दाबौ, सूधो गखौ मित्र हिसाबो ।
तौल माहिं घटि-बधि मति कारौ, इह जिन आज्ञा हिरदेधारौ। दोहा-तजौ चोरकी संगती, तासू नहिं व्यवहार ।
चोरयो माल गृहौ मती, जो चाहो सुख सार ॥ परदारा सेवन तजौ, या सम दोष न और । याको निदें जिनवराजा त्रिभुवनके मौर ।। पापी सेवें पर तिया, परे नर्कमे जाय। तेतीसा-सागर तहा दुख देखें अधिकाय ।। तातें माता बहन अर, पुत्री सम परनारि । गिनो भव्य तुम भावसों, शीलवृत्त उरधारि । जे जेठी ते मात सम, समवय बहन समान। आप थकि छोटि उमरि, सोनिज सुता समान । निन्दे बिसन जु सात ए, सात नरक दुखदाय । मन-वच-तनए परिहरौ, भजो जिनेसुर पाय ।। इन विसननि करि बहु दुखी, भयो अनन्ते जीव । तिनको को बर्णन करै, ए निदं जगपीव ।। कैयकके भाषू भया नाम, सूत्र अनुसार । राव युधिष्ठिर सारिखे, धर्मोत्तम अविकार ॥३०॥