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रसोई आदि क्रियाओं का वर्णन ।
जिन पूजा अर गुरुकी सेवा, फुनि स्वाध्याय महासुख देवा । संजम तप अर दान करौ नित, ए षट कर्म धरौ अपने चित | इम कर्मनि करि पाप जु कर्मा, नासें भविजन सुनि जिनधर्मा । चाकी उखरी और बुहारी, चूला बहुरि परंडा धारी ॥ हिंसा पाच तथा घर धंधा, इन पापनि करि पाप हि बंधा । तिनके नासनको पट कर्मा, सुभ भाषै जिनवरको धर्मा ॥ १०॥ ए सब रीति मूलगुण माहीं, भाषें श्रीगुरु संसें नाहीं । आठ मूलगुण अंगीकारा, करौ भव्य तुम पाप निवारा ॥ अर तजि सात विसन दुखकारी, पापमूल दुरगति दातारी । जूवा आमिष मदिरादारी, आखेटक चोरी परनारी ॥ जूवा सम्म नहिं पाप जु कोई, सब पापनिको इह गुरु होई । जूवारीको संग जु त्यागौ, दूतकर्मके रंग न लागौ ॥ पासा सारि आदि बहु खेला, सब खेलनिमें पाप हि भेला । सकल खेल तजि जिन भजि प्रानी, जाकर होय निजातमज्ञानी । ठौर ठौर मद मास जु निंदै, तात तजिये प्रभुको बंदै । तज वेश्या जो रजक - शिलासम, गनिकाको घर देखहु मति तुम | त्यागि अहेरा दुष्ट जु कर्मा, हृ दयाल सेवौ जिनधर्मा । करें अहेराते जु अहेरी, लहै नर्कमें आपद ढेरी ॥ क्षत्रीको इह होय न कर्मा, क्षत्रीको है उत्तम घर्मा । क्षत् कहिये पीराको नामा, पर- पीरा हर जिनको कामा । क्षत्री दुर्बलको किमि मारे, क्षत्री तौ पर पीरा टारें । मास खाय सो क्षत्री कैसो, वह तो दुष्ट अहेरो जैसो ॥ अर जु अहेरी तर्जे महेरा, दयापाल है जिनमत हेरा ।