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________________ २६ ॲन-क्रियाकोष | लव अंकुश प्रद्युम्न सरीसा, बृषभसेन गौतम स्वामीसा ॥ सेठ सुदर्शन जम्बूस्वामी, गज सुकुमार आदि गुणधामी । पत्र होय तौ या बिधिका है, अर कबहूं पुत्रो हो जो है ॥ तो सुसील सौभाग्यवती अति, नेम-धरम परवीन हंसगति । बाल सुब्रह्मचारिणी शुद्धा, ब्राह्मी सुन्दरिसी प्रतिबुद्धा ॥ चन्दनबाला अनन्तमतीसी, तथा भगवती राजमनीसी । अथवा पतित्रता जु पवित्रा है मुशील सीतासी चित्रा ॥ के सुलोचना कौशल्यासी, शिवा रुकमनी बीशल्यासी । नीली तथा अंजना जैमी, रोहणि द्रौपद सुभद्रा सैंसी ॥१००॥ अर जो कोऊ पापाचारी, पंच दिवस बीते बिन नारी । से विकल अन्ध अविवेकी, ते चंडालनिहूते एकी । अतिहिं घृणा उपजै ता समये, ताते कबहु न ऐसे रमिये । फल लागे तौ निपट हि बिकला, उपजै मंतति सठ बेअकला || सुन जन्मे तौ कामी क्रोधी, लापर लपट धर्म विरोधी । राजबिक बसु से अति मूढ़ा, मन्थनि माहि अजस आरूढा ।। सत्यघोष द्विज पर्वत दुष्टा, धवलसेठसे पाप सपुष्टा । पुत्री जन्मे तोहि कुशीली, पर-पुरुषा- रत अति अवहीली । राव जसाधरको पटरानी, नाम अमृतादेवि कहानि । गई नरक छ पति मारे, किये कुत्रजसो कर्म असारे || रात्रि विषै कपरा हवे नारी, सौ इह बात हियेमे धारी । पंच दिवसमे सो निसि नाहीं, ता बिन पंच दिवस श्रुतमाहीं ॥ इद आज्ञा धारौ तजि पापा, तब पावौ आचार निपापा । अब सुनि गृहपतिके पट कर्मा, जो भाषै जिनवरको धर्मा ||
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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