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रसोई आदि क्रियायोंका वर्णन ।
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निज भर्ताहूको नहिं देखें, नीची दृष्टि धर्मको पेर्ने । दिवस पांचौं न्हावौ उचिता, नितप्रति कपड़ा धोवौ सुचिता ॥ काहूंसों सपरस नहिं करिवौ, न्यारे आसन बासन धरिवौ । जो कबहू ताके बासनसो, छुयौ राछ अथवा हाथनसों ॥ तो वह बासन ही तजि देवौ, या विधि शुद्ध जिनाज्ञा लेवौ । व्यन्न वस्त्र जल आदि सबैही, ताकौ छुऔ कछु नहिं लेही ॥ कोरो पीस्यौ कछु नहिं गहिबौ, नाकौ ताके ठामहिं रहिवौ । ठौर त्याग फिरवौ न कितैही, इह जिनवरकी आज्ञा है ही । real नाही असन गरिष्ठा नाहीं दिवसे शयन वरिष्ठा । ह्रास कुतुहल तैल फुलेला, इक दिन माहिं न गीत न हेला ॥ काजल तिलक न जाको करिवौ, नाहिं बराबर मेहदी धरिवौ । नख - केशादि सुधार न करनों, या बिधि भगवत मारग धरनों ॥ और त्रियनमें मिलवौ जाकों, पंच दिवस है बर्जित ताकों । चंडाल अति निया, भाषै जिनवर मुनिवर वंधा ॥
पंच दिवस पति ढिग नहिं जावौ, अर नहिं वाके सज्या रचावौ ! भूमिसयन है जोग्य जु ताकों, सिंगारादि न करनो जाकों ॥ छट्टो दिवस न्हाय गुणवन्ती, शुभ कपडा पहरे बुधिवन्ती । पवित्र पतित जिन अर्चा, करवावे, धारै शुभ चर्चा ॥ पूजा दान करें विधि सेती, शुभ मारग माहीं चित देती । forest अपने पति ढिग जावै, तौ उत्तम बालक उपजावै ॥ सुबुधि विवेकी सुव्रत धारी, शीलवन्त सुन्दर अविकारी । दाता सूर तपस्वी श्रुतधर, परम पुनीत पराक्रम भर नर ॥ जिनवर भरत बाहुबल सगरा, रामहणू पांडव भर बिदरा ।