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________________ रसोई आदि क्रियाओंका वर्णन । तिममें प्रातहि छाणिवौ,आछी बिधिसों नीर ।। जो नहिं राखै गारके, जलभाजन बुधिवान । राखै बासण धातु ही,सो अति ही शुचिवान ।। चौपाई। इह तो जलको क्रिया बताई, अब सुनि जलगालन विधि भाई । रंगे वस्त्र नहिं छानों नीरा, पहरे वस्त्र न गाली वीरा ।। नाहिं पातरे कपड़े गालौ, गाढे वस्त्र छाड़ि अघ टालौ। रेजा दिढ आगुल छत्तीसा,-लंबा, अर चौरा चौबीसा ।। ताको दो पुड़ता करि छानो, यही नातणाकी विधि जानों। जल छाणत इक बूंदहु धरती, मति डारहु भाषे महावरती ।। एक बदमें अगणित प्राणी, इह आज्ञा गावै जिनवाणी। गलना चिउंटीधरि मतिदाबौ, जीयदयाको जतन धरावौ ।।७।। छाणे पाणी बहुते भाई, जल गलणा धोवै चिनलाई । जीवाणीको जतन करो तुम, सावधान है, बिनवें क्या हम ।। राखहु जलकी किरिया शुद्धा, तब श्रावक व्रत लहौ प्रबुद्धा । जा निवाणको ल्यावौ वारी, ताही ठौर जिवाणी डारी ।। नदी तलाब बावडी माही, जलमें जल डारौ सक नाही। कूप माहिं नाखौ जु जिवाणी, तौ इति बात हिये परवाणी।। ऊपरसू डारौ मति भाई, दयाधर्म धारौ अधिकाई । भंवरकलीको डोल मङ्गावौ, ऊपर नीचे डौरि लगायौ। व गुण डोल जतन करि वीरा, जीवाणी पधरावौ धारा। छाण्या जलको इह निरधारा, थावरकाय कहें गणधारा ।। हैपटिका बीते जो जाकों, अणछाण्याको दोष जु साकों।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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