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समसान महल सम भावे, जिनके न विषमता जाये।
साभ अलाम समाना,अपमान मान सम जाला ॥६॥ गिरि प्रीष्म समान जिनू के सुर कीट समान सिके। सुख्ता विपतरु सम दोऊ, चन्दन कईम सम होड ॥१॥ गुरु शिम्ब न मेद विचारें, समता परिपुरण पारे। जाने सम सिंह सियाका, जिनके समभाव विशाखा ॥२॥ संपति विपता है सरिखी, लघुता गुरुतासम परती। कंचन लोहा सम जाके, रंचन है विधम ता ॥ रति मरति हानि भर वृद्धी,रज सम जानें सब कही। खार कुअर तुल्य पिछार्ने, अहि फूलमाल सम जानें ॥४॥ नारी नागिन सम देखें, गृह कारागृह सम पेखें। सम जानें इष्ट अनिष्टा, सम मानें अवसि बलिदा ॥६५॥ जे भोग त सम जानें, सब हर्ष राग सम मानें। रस नीरस रंग कुरंगा, सुसद असद सम अंगा॥६६॥ शीतल पर उष्ण समाना, दुरगंध सुगंध प्रमाना । नहिं रूप कुरूप जु भेदा, जिनके समभाव निवेदा ॥१७॥ चक्री पर निरधन दोई, कछु भेदभाव नहि होई। चक्राणी भर इन्द्राणी, अति दान नारि सम जाणी ॥६॥ इन्द्र नागेन्द्र नरेन्द्रा, फुनि सर्वोत्तम अहमिन्द्रा । सूक्षम जीवनि सम देखें, कछु मेव भाव नहिं पे ॥६॥ युति निंदा तुल्य गिर्ने जो, पापनिके पुंज हनें जो। कमिन्धकृष्ण सम तुल्या, पाचौ समभाव मनुस्मा 100 सेवा उपसर्ग समाना, मेरी बांधव सम माना।