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बारह प्रत वर्णन
सिद्ध समान आपकों देखें, निश्चयनय कछु मेव न पेखें विवहारे प्रभु हम दासा, निश्चय सुद्ध बुद्ध अविनाशा ॥ ६शा एच्या ध्यावैं जो धर्मा, तेहि पिछानें श्रुतिको मर्मा । धर्म ध्यान चहुतगतिमैं होई, सम्यक बिन पावैं नहिं कोई ॥६४॥ छट्टम सत्तम मुनिके ठाणा, पंचम ठाणें श्रावक जाणा । चौथे अवत सम्यकज्ञानी, तेऊ धर्मध्यानके ध्यानी || ६५ || चौथेसों ते सप्तमताई, धर्मध्यानको कहैं गुसाईं । धर्मध्यान परभाव सुज्ञानी, नासै दस प्रकृती निजध्यानी || ६६|| प्रथम चौकरी तीन मिथ्याता, सुर नारक अर आयु विख्याता । अष्टमों चौमलों सुकली, सुकल समान न कोई विमली ६७॥ शुकलध्यान मुनिराज हि ध्यावैं, शुकलकरी केवलपद पावैं । शुकल नसावें प्रकृति समस्ता, करें शुकल रागादि विध्वस्ता ।६८ा जौ निज आतमसो लव लावे, शुकल तिनोंके श्रीगुरु गावैं । शुकलध्यानके चारि जु पाये, ते सर्वज्ञदेवने गाये ॥६॥ मुकला कल जु पर्मा, जानें श्रीजिनवर सह मर्मा 1 प्रथम पृथक वितर्क विवारा, पृथक नाम है भिन्न प्रचारा ॥ ७२ ॥ भिन्न भिन्न निज भाव विचारे, गुण पर्याय स्वभाव निहारै । नाम वितर्क सूत्रकौ होई, श्रुति अनुसार लखै निज सोई । ७२ ।। भाव थकी भावातर भावे, पहलो शुकल नामसो पावै । दूजो है एकत्व वितर्का, अवीचार अगणित दुति अर्का ॥७२॥ rat एकता लवलीना, एकी भाव प्रकट जिन
कोना । त अनुसार भयौ अविचारी. भेदभाव परणत्ति सब टारी 15३ | तीज सूक्षम किरियाधारी, सूक्षम जोग करें अविकारी |