________________
जैन-क्रियाकोष |
धीर ।
गिना ॥
सिंघवलोंन प्रतिनिको लेन, कर्तृम लोन सबै तजिदेन ॥ जो सिंधबहू त्यागे भया, महा तपस्वी श्रुतमें लया । ere तुम गोरसकी विधि सुनों, जिनवरकी आशा उरमुनो || दोहत जब महिषी अर गाय, तबसें इह मरजाद गहाय काचो दूध न राखौ सुधी, द्वै घटिका राखै तौ कुधी ॥ काचौ दूध न लेवौ वीर, अणछाण्यं पय नजिबो अंतर एक महूरत बसा, उपजै जीव असंखित सा ॥ जाको पय है तैसे जीव, प्रगटे इह भाषें जगपीव । पंचेन्द्री सन्मूर्छन प्राणि, भैया तू जिनवचन प्रवाणि || इह तो दूध तणी विधि कही, अब सुनि दहो महाची सही । जामण दीयो है जिंह दिना, ताके दूजो दिन शुभ पीछे दधि खावो नहिं जोगि, इह भाषे जिनराज अरागि । afant मथियौ पानी डारि ताको नाम जु छाछि विचारि ॥ ताही दिवस होय सो भक्ष, यह जिन आज्ञा है परतक्ष । मता हीजा माहीं तोय, बहुरयौ वारि न डारौ होय ॥ मथिया पाछे काचौ वारि, नाख्यौ सो लेवौ जु विचारि जेत काचा जलको काल, तेतौ ही ताको जु बिचारि ॥ छाण्यू जलसो काचौ रहै, एक महूरत जिनवर कहै । आगें सजीवा उपजंत, अणछान्या को दोष लगत ॥ १५० ॥ तिक्तकषाय मिल्यौ जो नीर, सो प्राशुक भाख्यौ जिन वीर । दोय पहर पहिली हो गहौ, यह जिन आज्ञा हिरदे बहो । तातौ जलजो भात उकाल, आठ पहर मरजादा काल | आगे सनमूर्छन उपजाहिं, पीवत धर्मध्यान सब जाहिं ॥
1
કે