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बारह व्रत वर्णन
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माहि करें उपवास गुरु, ताको सुनहु विचार ।। ३३ ॥ इन्द्रिनिकी उपसांतता, सो कहिये उपवास । भोजन करते हू मुनी, उपवासे अनदास ॥ ४ ॥ जो इन्द्रिनिके बास हैं, मज्ञानी अविवेक । करें उपासा तउ शठा, नहिं ब्रत धार अनेक॥ ३५॥ मुनि श्रावक दोऊनिकों, अनसन अनि गुणदाय । जाकरि पाप विनाश है, भाषे श्रीजिनराय ॥ ३६ ॥ इन्द्रिनिको उपशांत करि, करै चित्तको रोध । ते उपवासे उत्तमा, लहें आपको बोध ॥३७॥ गनि उपवासे ते नरा, मन इन्द्रिनिकों जीति । करें वास चेतनविर्षे, शुद्धभावसों प्रीति ॥ ३८॥ इस भव परभव भोगकी, तजि माशा ते धीर। करम-निर्जरा कारणे, करें उपास सु वीर ॥३६ ।। आतम ध्यान धरै बुधा, के जिन श्रुत अभ्यास । तब अनसनको फल लहै, केवल तत्व अभ्यास ॥४॥ बऊ महार विकथा चऊ, तजिवी चारि कषाय । इन्द्री विषया त्यागिवौ, सो उपवास कहाय ॥४१॥ है विधि अनसनका कहैं, महामुनी श्रुतिमाहिं। सावधि निरवधि गुण धरा, जाकरि कर्म नशाहिं ॥४२॥ एक दिवस तीन दिन, च्यारि पांच पखवार । मासी जय प्रय च्यारि हु, मास छमास विचार ।। ४ ।। वर्षावधि उपवास करि, करें पारनों जोहि । सावटि अनसन तप भया, भाचे श्रीगुरु सोहि ॥ ४॥