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________________ NAVRA पारह प्रत वर्णन । जीवदयाको हेतु समाधी, विना समाधि मिटेन उपाधी। या उपाधि मिटे बिन नाही, तातें दया समाधि ही माही बूत शीलनिकौ सर्वस पही, इह संन्यास महा सुख देही। मुनिकों अनशन शिवसुख देई, अथवा सुर महमिंद्र करे ८८ श्रावकको सुर उत्तम कार, नर करि मुनि करि भवदधि वारे उभय धर्मको मूल समाधी, मेट सकल माघि भर व्याधी कायर मरणे बहुस हि मूवा, अब धरि वीर मरण जगवा । बहुत भेद हैं अनशनके जी, सबमें माराधन चउ ले जी. दरसन ज्ञान घरन तप शुद्धा, ए चारौं ध्या प्रतिबुद्धा । निश्चय पर व्यवहार नयनि करि, चाराधन सेवैचितकरि ताको सुनहु विधारि पवित्रा, जा करि छूट भव भ्रम मित्रा देव जिनेसर गुरु निरपंथा, सूत्र क्यामय जैन सुपन्था १२ नव तत्वनिकी श्रद्धा करिवौ, सो ब्यवहार सुदर्शन धरिवौ निश्चै अपनो आतमरामा, जिनवर सो अविनश्वरधामा६३ गुण-पर्याय स्वभाव अनन्ता, द्रव्यथकी न्यारे नहिं सन्ता। गुण-गुणिको एकत्व सुलखियो, आतमरुचि अदाको परिवौ करि प्रतीति जे तत्वतनी जो, हनै कर्मकी प्रकृति धनी जो। सो सम्यकदर्शन तुम जानों, केवल आतम भाव प्रधानों ९५ अब सुनि ज्ञान अराधन भाई, सम्यकज्ञानमयी सुखदाई । नव पदार्थको जातें भेदा, जिनवानी परमान सुवेदा ॥६६॥ पा परम पदकों प्रमु जाने, भयौ जु दासा बोष प्रवाने । इ व्यवहारतनों हि स्वरूपा, निश्चय जाने हूं अमरूपा शुदबुद्ध अविरुद्ध प्रद्धा, अतुल शक्ति रूपी मनुबद्धा ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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