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________________ जैन-क्रियाकोष। चेतन अनन्त गुणातम ज्ञानी, सिद्ध सरीखौ लोक प्रवानी। अपनो भाव भायवो भाई, सो निधय ज्ञान जु शिवदाई ६६ फुनि सुनि सम्यकचारित रतना, त्रसथावरको अतिहीजतना आचरिवौ भक्ती जिन मुनिकी, आदरिवौ विधि जोहिसुपुनकी पंच महाव्रत पंच सुसमिती, तीन गुपति धारै हि जु सुजती अथवा द्वादस व्रत सुधरिवौ, आवक संजमको अनुसरिवौ १ ए सब है विवहार चरित्रा, निश्चय आतम अनुभव मित्रा। जो सुस्वरूपाचरण पवित्रा, थिरता निजमें सो सु पवित्रा ए रतनत्रय भाषे भाई, चौथौ सम्यकतप सुखदाई। व्यवहार द्वादश तप सन्ता, मनसन आदि ध्यान परजन्ता निश्चै इच्छाको जु निरोधा, पर परणति तजि मातम सोषा अपनो आतम तेजकरी जो, सो सप भाषहि कर्महरीजो ४ ए चउ पाराधन आराधे, सो सन्यास घर शिव साधे। अरहन्ता सिद्धा साधा जे, केवलि कथित सुधर्म दया ले ५ ए चउ शरणा लेइ सु ज्ञानो, ध्यावै परम ब्रह्मपद ध्यानी। णमोकार मंतर जपनौ जो, ओंकार प्रणवै रटतौ जो ॥६॥ सोऽह अजपा अनादह सुनतौ, श्रीजिन विम्ब चितमोंमुनतो धर्मध्यान धरन्तौ धोरी, लगी जिनेसुर पदसों डोरी॥७॥ ध्यावतौ जिनवर गुन धीरो, निजरस रातौ बिरकत वीरो दुर्बल देह अनेह जगतसों, करि कषाय दुर्बल निज धृतिसों क्षमा करै सब प्राणी गणसों, त्यागै प्राण लाय लव जिणसों सो पण्डितमरणा जु कहावै, ताकौ जस श्रुतिकेवलि गावे सल्लेखणके बहुते भेदा, भाषे जिनमत पाप उछेदा ।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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