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________________ चारह प्रवर्णन। बालचिनी सावित्री आनि, जातीकल इत्यादि क्वानि । सबमें पान महादोपीक, असे पापनि माहि मलीक १६॥ पान त्यागियौ जावो जीव, पापनिमें प्राणी सुमतीय । नो मतिमोगी छांदि न सके, बोरे खाय दोपते सके। गीत नृत्य वादिन जु सर्व, उपजावे मति मनमथ गर्व । ए कौतूहल अधिके बन्ध, इनमें जो राचे सो मन्ध Itel भी न सनथा छाडे जाय, तोहु अधिक न राग घराय। मरजादा माफिकही भजे, मौसर पाय सकल ही त। ६६ एक सेद या माहों भौर, मापुन बैठो अपनी ठौर । गाक्त गीत त्रिया नीकली, सुनिकर हर चितार रली ॥१०॥ वामें दोष छगै मषिकाय, भाव सराग महा दुखदाय । पातरि नृत्य मखारे माहिं, नट नटवा अथ नृत्य कराहिं ।। वादीगर आदिक बहु ख्याल, बिनु परमाण न देखौ लाल। अब मुनि ब्रह्मचर्यकी बात, याहि जु पाले तेहि उवात ॥२॥ परनारीको है परिहार, निजनारीमें इह निरधार । जावो जीव दिवसको त्याग, रात्रि विष हू मलपहि राग ॥३॥ पाचू परवी सील गहेय, अर सब व्रतके दिवस घरेय । कबहुक मैथुन सेवन परै, सो मरभादा माफिक करें ॥४॥ महा दोषको मूल कुशील, या तजिबेमें ना करि ढील। सेक्त मनमथ जीव विधात, इहै काम है अति उतपात ॥५॥ मोन सर्वथा त्याग्यौ जाहि, तौह अलप सेववौ ताहि ।। नदी तलाब बापिका कूप, तहां जात न्हाबौ जु विरूप ॥ मो न्हावं बिनछाणों गले, ते सब धर्म कर्मते टलैं।
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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