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बारह व्रत वर्णन। विन वैराग न ज्ञान इबै राग त बड़भाग।।७६ ॥
छन्द चाल अब सुनि सब ब्रतको कोटा, देशावकाशिनत मोटा। ताकी सुनि रीतिजु भाई जैसी जिनराज बताई ॥ ७७ । पहले जुकरौ परमाणा, दिसि विदिशाको विधि जाणा। इन्द्री विषययनको नेमा, कीयौ धरि व्रतसों प्रेमा ।। ७८ । धन धान्य अन्न बस्त्रादी, भोजन पानाभरणादी । मरजादा सबकी धारी, जीवितलों धर्म सम्हारी ॥ ७६ जामें मरजादा बरसी, तामें छै मासी दरसी। करनी चउमासी तामे, बहुरि द्वै मासी जामे ।। ८० । ताहूमे मामी नेमा, मासीमे पाखी प्रेमा । पाखीमे आधी पाखी, जाहूंमें दिन दिन भाखो ।। ८१ । दिन माहीं पहरा धारै, पहरनिमें घरी विचारै । पल पलके धारै नेमा, जाके जिनमनसो प्रेमा ।। ८२ भोगनिसों घटतो जाई, व्रत है चड़तो अधिकाई। सीमामे सोमा कारै, जिन मारग जनतै धारें।। ८३ ॥ हू वै बाडि फले क्षेत्रनिके, जैसे कोट जु नगरीके । तैसे यह द्वादश इतके, देशावकाशित सबके ॥ ८४ । देसावकाशित माही, सतरा नेम ज सक नाही।
तिनकी मुनि रीति जु मित्रा, जिन करि है व्रत पवित्रा ) दोहा-नियम किये व्रत शोभा हो, नियम बिना नहिं शोभा
मागे पान धरि नेमकों, धार तजि मद लोमा
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