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जैन-क्रियाकोष। अपनी शक्ति प्रमाण जो, मेटे परकी पीर । तन मन धन करि सर्वको, साता दे वर वीर ॥४२॥ मन्न वस्त्र जल औषधी, त्रण आदिक जे देय । जाने अपने मित्र सहु, करुणा भाव धरेय ॥४॥ बाल बृद्ध रोगीनको, अति ही जतन कराय । अंघ पंगु कुष्टि न परि, कर दया अधिकाय ॥४४॥ बन्दि छुडावै द्रव्य दे, जीव वचावै सर्व। अभैदानदे सर्वको, धरै न धनको गर्व ॥४५॥ काल दुकाले मांहि जो, अन्नदान बहु देय । रंकनिको पोहर जिकौ, नर भवको फल लेय ॥४६॥ आको जगमें कोउ नहीं, ताको भीरी माइ । दुरबलको बल शुभ मती, प्रमुको दास कहाइ॥४७॥ शीतकालमें शीत हर, दे वस्त्रादिक वीर । उस्णकालमें तापहर, वस्तु प्रदायक धीर ॥४॥ वर्षा काले धर्म घी, दे आश्रय सुखदाय । जल बाधा हर वस्तु दे, कोमल भाव धराय 88 भांति भातिके औषधी, भाति भातिके चीर । भाति भातिकी वस्तु दे, सो जैनी अगवीर ॥५०॥ दान विधी जु अनन्त है, कौ लग करे बखान । जाने श्रीजिनराजज, किह दाता बुधिवान ॥५१॥ भक्ति दया द्वै विधी कही, दान धर्मकी रोवि । ते नर अङ्गीकृत करें, जिनके जैन प्रतीति ॥५२॥ लक्ष्मी दासी दानकी, दान मुकनिको मूल। .