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________________ A anvrmarwAmAyaN. mme बारह व्रत वर्णन । षोडस सुरगोंलों जावें, आतम अनुभव नहिं पावें ॥३०॥ दोहा-जधनि कुपात्रा मवती, बाहिर धर्मप्रतीति । दीखें समदृष्टि समा, नहिं सम्यककी रीति ॥३१॥ शुभगति पावौ तौ कहा, लहै न केवल भाव । ये संमारी जानिये, भाई श्रीजिन राव ॥३२॥ इनको नानि सुपात्र जो, धारें भक्ति विधान । सो कुभोग भूमी लहै, अल्पभोग परवान ॥३॥ पर उपगार दया निमित्त, सदा सकलको देय । पात्रनिकी सेवा करै, सो शिवपुर सुख लेय ॥३४॥ नहिं श्रावक नहिं व्रत जती, नहिं श्रावक व्रत जानि । नहिं प्रतीति जिन धर्मकी, ते अपात्र परवानि ॥३५॥ बिनै न करनों तिन तनों, दया सकल परिजोग। करनी भक्ति सु पात्रकी, भक्ति अपार अजोगि ॥३६।। करनी करुणा सकल परि, हरनी सबकी पीर। करनी सेवा सन्तकी, इह भाषै श्री बीर ॥३७॥ पात्रापात्र द्विभेद ए, कहे सूत्र अनुसार। अब सुनि करुणादानको, भेद विविध परकार ॥३८॥ सब आतमा आपसे, चेतनगुण भरपूर ।। निज परको पहिचान बिन, भ्रमे जगतमें क्रूर ॥३६॥ उदै कर्मके हैं दुखो, मादि व्याधिके रूप। परे पिण्डमें मूढधी, लखें नहीं चिद्रूप ॥४०॥ तिन सब पर धरिके दया, करैं सदा उपगार। नर विर सबही जीवको, हरै कष्ट प्रतधार ॥७॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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