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बारह व्रत वर्णन। क्रोध मान छल लोम खल, प्रथम चौकरी जानि । मिथ्या भर मिश्रहि तथा, समै प्रकृति परवानि । ८५ सात प्रकृति ए खय गई, रह्यौ अलप संसार। जीवनमुक दशा धरै, सो क्षायकसम धार । ८६ सातो जाके उपसमें, रमै आपमें धीर । सो उपसम-सम्यक धनी, जघनि माहि मधिवीर । ८० सात मांहि षट उपसमें, एक तृतीय मिथ्यात । उदै होय है जा समें, सो वेदक विख्यात । ८८ वेदक सम्यकवन्त जो, अनि जघनिमें जानि । कहे तीन विधि जयनि ए, निज आज्ञा उर आनि ॥८॥ जपनि पात्रकू अन्न जल, औषध पुस्तक आदि। वस्त्राभूषण आदि शुभ, थान मान दानादि ।।१०॥ देवो गुरु भार्षे भया, करनो बहु उपगार। हरनी पोरा कष्ट सहु, धरनों नेह अपार ॥६॥ सब ही सम्यकधारका, सदा शात रसलीन। निकट भव्य जिनधर्मके,-धोरी परम प्रवीन ॥२॥ नव भेदा सम्यक्तके, तामे उत्तम एक। सात भेद गनि मध्यके, जघनि एक सुविवेक ॥३॥ वेदक एक अघन्य है, उत्तम क्षायक एक । और सबै गनि मध्य ए, इह धारौ जु विवेक all क्षयोपसम वरते त्रिविध, वेदक चारि प्रकार। झायक उपसम जुगल जुत, नौधा समकित धार ॥५॥ वेदक कायक चंचला, तोपनि मर्म उछेद ।