________________
जन-क्रियाकोष । आर्या घरबार ज त्यागे, श्रीजिनवरके मत लागे । ७२ ॥ राखै इक वस्त्र हि मात्रा, सप करि है क्षीण जु गात्रा। कमडल पीछी पर पोथी'ले भूति तजी मह थोथी।७४ थावर जगम ननवाना, जानें सब आप समाना। जे मुनि करि पात्रमहारा, सिर लोच करें तप धारा । ७५ तिनकी सो रीति ज धार जगसो ममता नहिं का। द्विज क्षत्री बणिक कुला ही, हवै आर्या अति विमलाही ७६ अण व्रत परि महाबत तुल्या, नारिनमें एहि अतुल्या। माता त्रिभुवनकी भाई, परमेसुरमों लवलाई । ७७ आर्याकों वस्त्र ज भोजन, देनें भक्ती करि भोजन। पुस्तक औषधि उपकरणा, देने सहु पाप ज, हरणा [७८ उपसर्ग हरै बधिवाना, रहनेकों उत्तम थाना ।
देवे पुन वह अविनासी, लेवै अति आनंदरासी । ७६ दोहा छै पडिमा जानों जघनि, मध्य ज नवमी ताई ।
कस एकादशमी उभौ, उतकृष्टी कहवाई । ८०॥ पतिव्रता जो श्राविका, मध्यम माहि जघन्य । ब्रह्मचारिणी मध्य है, आर्या उत्तम धन्य । ८१ पंचम गुण ठाणो प्रती, श्रावक मध्य ज पात्र। छठे सातवे ठाण मुनि, महामात्रगुणगात्रा८२ कहे मध्यके भेद त्रय अर उतकिष्टे तीन । सुनो जघन्य जू पात्रके, तीन मेद गुणलीन । ८३ चौथे गुप्तठाणे महा, क्षायक सम्यकवन्त । सो खतकिष्टे जघनिमें, भार्षे श्रीभगवन्त । ८४