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बारह व्रत वर्णन । द्वे माहि महंत जु ऐला, निश्चलता करि सुरशैला। जिनके परिग्रह कोपीना, अर कमंडल पोछी तीना ॥३२॥ जिनसासनको अभ्यासा. • वभावनिसू जु उदासा। श्रावकके घर अविकारा, ले आप उदंड अहारा ॥ गुणवान साध सारीसा, लुश्चितकेसा बिनरीसा। ए ऐलि त्रिवर्णा होई, शूद्रा नहिं ऐलि ज कोई ॥६॥ इनतें छुल्लक कछु छोटे, परि और सकलतें मोटे । इक खंडित कपरा राखें, तिनको छुल्लक जिन भाखें ६५
कमंडलु पीछी कोपीना, इन बिन परिग्रह तजि दीना। जिनश्रुति अभ्यास निरंतर, जान्यू है निज पर अंतर । ६६ । ने हैं जु उदड विहारा, ले भाजनमाहिं अहारा। कातरिका केस करावे, ते छुल्लक नाम कहावै । ६७ ॥ चारों हैं वर्ण जु छुल्लक, राखें नहिं जगसू तहलुक । आनन्दी आसमरामा, सम्यकदृष्टी अभिरामा ।। ६८ । एकै हैं भेद बड भाई, ग्यारम पडिमा जु कहाई । वन माहिं रहैं वर वीरा, निरभै निरव्याकुल धीरा । ६६ । तिनकी करि सेव ज भाया, जो जीवनिको सुखदाया। तिनके रहनेकों थाना, वनमें करने मतिवाना । ७० । भोजन मेषज जिनप्रन्था, इनकों दे सो निजपंथापावै अर दे उपकरणा, सोहर जनम जर मरणा । ७१। उपसर्ग उपद्रव टारे, ते निरभै थान निहारै । दसमी अर ग्यारम दोऊ, मध्यम उतकिष्टे होउ । ७२ अथवा आर्या व्रतधारी, अणुव्रतमें श्रेष्ठ अपारी ।