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________________ बारह वजन। १७ पहली रोकें सम्यका, चौथी केवलज्ञान 1 ८४ । तीन मिथ्यात हतें महा, मुनित्रत मर अणुनना। भव्रत सम्यकहते, करहिं अधर्मप्रवृत्त । १५। प्रथम मिथ्यात अबोष अति, जहां न निज-परबोध । धर्म अधर्म विचार नहि, तोलोम अर क्रोध । ६६ । दूमी मिन मिथ्यात है, कछु इक बोध प्रबोध । तीजी सम्यक प्रकृति जो, वेदक सम्यक बोष । १७॥ कछु पचल कछु मलिन जो, सर्वघाति नहिं होइ । तीन माहि इह शुभ तहूं,-वरमनीक है सोइ । १८ । ए मिथ्यात जु तीन विधि, कहे सूत्र अनुसार । सुनों चौकरी बात अब, चारि चारि परकार । ६६ । कोष जु पाहन रेख सो, पाइन थंभ जु मान । माया बास ज जड़ समा, अति परपंच बखान ।। १००। लोभ जु लाखा रंग सो, नर्फोनि दातार । भरमावै जु अनंत भव, प्रथम चौकरी भार ।१। इलरेखा सम क्रोष है, अस्थि भसम मान । माया मीढ़ा सींगसी, तिथि षट मास प्रमान । २। रज भालके सारखो, लोभ पशुगति दाय । इह दूजो है चौकरी, अप्रत्याख्यान कहाय ॥३॥ रघरेखा सम क्रोध है, काठथम्म सो मान । गोमूत्रकी जु वक्ता, ता सम माया जान ॥४॥ लोभ कस्मारक सो, नर भवदायक होई। दिन पंदरा लग वासना, तृतीय चौकरी सोई॥५॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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