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________________ बारह प्रत वणन । कामकथा सुनिवौ नहिं कबहू, भूलै धर्ने चेत परि अबहू ॥३६॥ परनिंदा सुनियां अति पापा, निंदक लहै नरक संतापा । कबहुँ न करिवौ राग अलापा, दोष त्यागिवौ होय निपापा ॥३॥ बिकथा करिवो जोगि न बीरा, धर्मकथा सुनिवौ शुभ धीरा। मालवाल बकिवौ नहिं जोग्या, गालि काढ़िवौ महा अजोग्या ३८ विनाजेनबानी सुखदानी, और वित्त परिवौ नहिं प्रानी। केवलित केवलिकी आणा, ताको लागे परम सुजाणा ॥३६॥ ते पावें निर्वाण मुनीशा, अजरामर हो जोगीशा । सीख श्रवण रचना कुकथाको, नहीं करौजु कदापि वृथाको १४० जीवदयामय जिनवरपंथा, धारै श्रावक अर निरपन्था। काम क्रोच मद छल लोभादी, टारै जनी जन रागादी ।। ४॥ आगम अध्यातम जिनबानी, जाहि निरूपें केवल ज्ञानी। ताकी श्रद्धा दिढ़ घरि धोरा, करणगोचरी कर वर वीरा ॥४२॥ जाकरि छूटै सर्व अनर्था, लहिये केवल आतम अर्था । धर्म धारणा धारि अखण्डा, तजौ सर्व ही अनरथदंडा ॥४३॥ इन पंचनिके भेद अनेका, त्यागौ सुबुधी धारि विवेका । बड़ो अनर्थ दण्ड है दूजो, यातें सर्व पाप नहिं दूजो ॥४॥ या सम और न अनरथ कोई, सकल वरतको नाशक होई । दूत कमके विसन न लागे, तब सब पाप पन्थतें भागे ॥४५॥ दूतकर्ममें नाहिं बड़ाई, जाकरि बूढे भवमें भाई। अनरथ तजिवौ अष्टम व्रता, तोजो गुणत्रत पापनिवृत्ता ॥४६॥ ताके अतीचार तजि पंचा, तिन तजियां अघ रहै न रचा। पहलो अतीचार कंदर्पा, ताको भेद सुनों तजि दर्पा ॥४७॥
SR No.010271
Book TitleJain Kriya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size7 MB
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