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निवेदन
भारतीय वाङ्मय के विकास में जैन कवियों का योगदान अविस्मरणीय रहा है। यद्यपि जैन साहित्य की पृष्ठभूमि धार्मिक है, किन्तु उसका काव्य तात्त्विक मूल्य अनुपेक्षणीय है। अनेक जैन भण्डार जैनों की काव्य-प्रतिभा का इतिहास प्रस्तुत कर रहे हैं, किन्तु विस्मय की बात तो यह है कि अब तक किसी आलोचक या गवेषक का ध्यान इस ओर नहीं गया कि जैन कवियों की वाणी ब्रजभाषा में भी स्फुरित हुई है।
विद्वानों द्वारा इससे पूर्व यों तो जैन साहित्य और इतिहास से सम्बन्धित कुछ कार्य हुआ है, किन्तु आलोच्य युग के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों के साहित्यिक मूल्यांकन की ओर किसी की सम्यक् दृष्टि नहीं गयी है। इस सम्बन्ध में अब तक जो ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं, उनमें मुख्य ये हैं :
हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास -श्री नाथूराम प्रेमी हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास-श्री कामताप्रसाद जैन हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन -डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि -डॉ. प्रेमसागर जैन हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य -डॉ० सियाराम तिवारी रीतिकाल के प्रमुख प्रबन्धकाव्य -डॉ० इन्द्रपालसिंह 'इन्द्र' राजस्थान के जैन शास्त्रभण्डारों की सूची-डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल हमारे कुछ काव्यों का परिचयात्मक विवरण उपर्युक्त कृतियों में प्रस्तुत अवश्य किया गया है किन्तु इनके अध्ययन और इनके प्रणेताओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालने का कार्य किसी में नहीं हुआ। इनके अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मेरा विषय-'जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन (वि० सं० १७००-१६००) अछूता रहा।
यह विषय दो सौ वर्ष की सीमाओं में सीमित है। इसके अन्तर्गत हिन्दी का प्राय: समग्र रीतिकाल समाविष्ट हो जाता है। विषय की परिधि को देखकर कुछ लोग यह सोच सकते हैं कि इस युग के जैन प्रबन्ध भी रीतिकालीन साहित्यिक प्रवृत्तियों से उन्मुक्त न होंगे, किन्तु इन कृतियों का अध्ययन इस अनुमान को अन्यथा सिद्ध कर देता है।