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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
नीतिकाव्य-धारा
इस काल में बहुत से कवियों ने नीतिकाव्य परम्परा को भी स्वीकार किया । मुक्तककाव्य नीति रचना के लिए अधिक उपयुक्त भी होता है । 'नीतिकाव्य की रचना करने वाले कवियों में प्रमुख रूप से गिरधर कविराय, अली मुहिबखां 'प्रीतम', जयपुर के महाराज प्रतापसिंह, सम्मन, रजिया, महाराज विश्वनाथसिंह (रीवा नरेश), दीनदयाल गिरि आदि प्रमुख रूप से आते हैं।" कवि बिहारी और ठाकुर का प्रयास भी इस दिशा में महत्त्वपूर्ण माना जायेगा । उनके काव्य में नीति-सूक्ति एवं लोकोक्तियों का प्रचुर प्रयोग मिलता है । तत्कालीन जैन काव्य में भी विधि
और निषेधमूलक नीतियों का बहुलता से प्रयोग हुआ है। कवि भूधरदास की नीति-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण देन है । इसके अतिरिक्त रामचन्द्र बालक, पं० मनोहरदास, भैया भगवतीदास प्रभृति कवियों के नाम भी उल्लेखनीय हैं। 'भैया' कवि की अधिकांश नीतियाँ धर्म-विषयक हैं।
वीरकाव्य-धारा
तत्कालीन मुगल साम्राज्य के विरुद्ध अनेक हिन्दू राजाओं, सिखों और मराठों ने अपनी स्वतन्त्रता एवं अखण्डता की रक्षा के लिए जो अनवरत संघर्ष किया, उसका प्रतिबिम्ब काव्य में भी झलका। अनेक कवियों ने अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियों के प्रणयन द्वारा वीर रस को वाणी दी। डिंगल और पिंगल दोनों में ही यथेष्ट वीर-काव्य का सृजन हुआ। कवि जोधराज रचित 'हम्मीररासो', सूर्यमल्ल मिश्रण रचित 'वंशभास्कर' और 'वीरसतसई' डिंगल की अद्भुत रचनाएं हैं। पिंगल के वीर रस के कवियों में भूषण, सूदन और लाल कवि अमर हैं-ठीक वैसे ही जैसे उनके काव्यों के नायक छत्रपति शिवाजी, जाट राजा सूरजमल और राजा छत्रसाल अमर हैं । इन कवियों की कृतियों में कोरी वीर-गाथाएं नहीं हैं; उनमें वीर रस. का ऊज्वसित प्रवाह है, धरती से आसमान को छू देने वाली और प्राणहीन प्राणों में प्राण फूकने वाली वीर भावनाओं का विनिवेश है।
१. डॉ० ब्रजनारायण सिंह : कवि पद्माकर और उनका युग, पृष्ठ ५० ।