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________________ ३२६ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन श्री नेमि को' की टेक थोड़े से पद्यों को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण काव्य में प्रत्येक दो पंक्तियों के पश्चात् रखी गयी है । 'नेमिचन्द्रिका' (आसकरण), 'पंचेन्द्रिय संवाद', 'चेतन कर्म चरित्र', 'श्रोणिक चरित', 'सीता चरित' में भी सटेक गीत शैली के स्थल मिल जाते हैं । एक उदाहरण सामने है : प्राणी आतम धरम अनूप रे, जग में प्रगट विद्रूप ॥प्राणी०॥टेक।। इन्द्रिन की संगत किये रे, जीव परै जग माहिं ॥ जन्म मरन बहु दुख सहे रे, कबहू छूटे नाहिं ।।प्राणी०॥' ऊपर प्रबन्धकाव्यों की शैलियों के सम्बन्ध में संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। उनमें उपर्युक्त शैलियों के अतिरिक्त और शैलियों का भी प्रयोग हुआ है। सभी शैलियों के मूल में भावाभिव्यंजना की विविधता दृष्टिगोचर होती है । भाव-रस के अनुकूल शैलियां बदलती रही हैं । जब यही आश्चर्य का विषय नहीं है कि एक कवि अनेक शैलियों का प्रयोग करे, तब अनेक कवि अनेक शैलियों का आश्रम लें तो यह स्वाभाविक है। शैलियों की नवीनता में परम्परागत विचारधारा भी सद्य हो जाया करती है । अस्तु, निष्कर्ष ऊपर आलोच्य काव्यों की भाषा-शैली के संदर्भ में जो विवेचना की गयी है, उसका सार यह है कि सभी काव्य मूलतः ब्रजभाषा में लिखे गये हैं। थोड़े काव्यों में कहीं-कहीं ब्रज-समीपवर्ती भाषा-बोलियों के प्रभाव की हल्की छाया पड़ गयी है । कुछ काव्यों में ब्रजभाषा साहित्यिकता को लेकर उतरी है। कुछ में वह अनेक स्थलों पर व्यवहार की भाषा बन गयी है और वहाँ लोक-तत्त्व उभर उठा है । सभी कृतियों में भाव के अनुकूल भाषा ने अनेक रूप लिये और बदले हैं। उनमें से अधिकांश में अलंकारों को बलपूर्वक नहीं लाया गया है। विविध प्रसंगों पर विविध शैलियों का उनमें व्यवहार हुआ है । अधिकांश छन्दों में संगीतात्मकता को प्रधानता दी गयी है । 'ढालों' का बहुल प्रयोग इसका प्रमाण है। १. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य १२५, पृष्ठ २५० ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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