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________________ २८४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन चीरें करवत काठ ज्यों, फारें पकरि कुठार । तोड़ें अन्तर मालिका, अन्तर उदर विदार ॥ पेलें कोल्ह मेलकें, पीसें घरटी घाल । तावें तातें तेल में, दहें दहन परजाल ।। पकरि पांय पटकें पुहुमि, झटकि परसपर लेहिं । कंटक सेज सुबावहीं, सूली पर धरि देहिं ॥ घसें सकंटक रूख तें, बैतरनी ले जाहिं । घायल घेरि घसीटिये, किंचित करुना नाहिं ।' यह नरक का वर्णन है जिसमें बीभत्स और भयानक, दोनों रस एक साथ चमत्कृत हो रहे हैं । 'चीरें करवत काठ ज्यों, फारें पकरि कुठार' में 'ठ', 'फ' वर्ण 'र' दग्धाक्षर के साथ मिलकर ओजगुण को साकार करने में गजब ढा रहे हैं । 'तोड़ें अन्तर मालिका', 'पेलें कोल्ह मेल के', 'पीसें घरटी घाल', 'पकरि पाय पटके', 'झटकि परसपर', 'घसें सकंटक', 'घायल घेरि घसीटिये' जैसी शब्दावली विस्फोटक रूप में सामने आयी है । कवि ने ओजपूर्ण शैली का आश्रय लेकर कोमल वर्गों को परुष वर्णों की गोद में बैठाकर ओज गुण को मूर्तमान कर दिया है। ओजगुणविषयक एक और अवतरण द्रष्टव्य है : तास गजराज के दंत फुनि दंत करि तोड़ि के करि दीयो बल विहीनो। सूडि करिके बहुरि सूडि अरि गजतनी तोड़ि के भूमि गज डारि दीनो॥२ इन शब्दों की चपल गति के साथ ही कार्य-व्यापारों की द्रुत गति विचारणीय है । युद्ध का चित्र ओजपूर्ण ध्वनि में उठ रहा है । आलोच्य काव्यों में ओज गुण का वैभव वीर, रौद्र, भयानक, बीभत्स रस के स्थलों पर देखा जा सकता है। ऐसे स्थलों पर कर्णकटु, ओजगुण १. पार्श्वपुराण, पद्य १७२-७५, पृष्ठ ४१-४२ । २. वरांग चरित, पद्य १५५, पृष्ठ ४८ । .
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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