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रस-योजना
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वात्सल्य रस
विवेच्य प्रबन्धकाव्यों में कवियों की दृष्टि वात्सल्य रस-विधान की ओर अधिक नहीं गयी। एक तो उनमें वात्सल्य की पीठिका के लिए पुत्रजन्मादि के प्रसंग ही थोड़े हैं; दूसरे, जहाँ ऐसे प्रसंग हैं भी, वहाँ उन्हें यों ही चलता कर दिया गया है। शिशु को क्रम-क्रम से बढ़ाकर थोड़ी-सी पंक्तियों में ही बड़ी आयु में प्रवेश करा दिया गया है। फिर भी उनमें से कुछ काव्यों में इस रस के अल्प प्रसंग अच्छे मिल जाते हैं।
'नमीश्वर रास' में दो-एक स्थलों पर वात्सल्य रस की प्रतिष्ठा है।' 'पार्श्वपुराण' में बालक पार्श्वकुमार के संदर्भ को लेकर वात्सल्य रस के स्थल की सष्टि की गयी है, जो आगे चलकर वत्सल भक्ति रस के रूप में परिणत हो गया है। 'सीता चरित' में माता द्वारा राम-लक्ष्मण को विदाई देने के प्रसंग में वात्सल्य रस उमड़ कर बह चला है। वास्तव में यह चित्र बड़ा ही सजीव और हृदयस्पर्शी है :
(क) शील कथा, पृष्ठ ४। (ख) वही, पृष्ठ ७ । (ग) दोय पुत्र तिनकै अवतरे। पाप पुन्य की पटतर धरे।
जेठो नन्दन कमठ कपूत । दूजो पुत्र सुधी मरुभूति ।। जेठो मति हेठो कुटिल, लघु सुत सरल सुभाय । विष अम्रत उपजे जुगल, विप्र जलधि के जाय ॥ बड़े पुत्र ने भारजा, ब्याही वरुना नाम । लघु ने बरी बिसुन्दरी, रूपवती अभिराम ॥
-पार्श्वपुराण, पद्य ५४-५६, पृष्ठ ८ । (घ) श्रेणिक चरित, पद्य २८ से ३०, पृष्ठ ३-४ । २. (क) नेमीश्वर रास, पद्य १०७, पृष्ठ ७ ।
(ख) वही, पद्य १५३, १५४, पृष्ठ १० । ३. पार्श्वपुराण, पद्य २ से ६, पृष्ठ १०७ ।