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________________ २४८ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकायों का अध्ययन उपर्युक्त दो-एक स्थलों में हमने विविध संचारी भावों के परिपार्श्व में करुणा (करुण रस नहीं) का व्यापक प्रसार एवं प्रभाव देखा । नीचे स्थायी भाव शोक से परिपुष्ट एक करुण रसात्मक स्थल की चर्चा की जाती है, जो अत्यन्त हृदयद्रावक है । वह स्थल 'नेमीश्वर रास' में आया है। वहाँ कृष्ण के महाप्रयाण और बलभद्र की शोक-विह्वल अवस्था का चित्र है। वन-प्रदेश, कृष्ण की पूर्ण अचेतावस्था, बलभद्र द्वारा उनसे 'पानी पीलो ! मुख धोलो !! एक बार बोलो !!!' आदि कहने पर भी कोई उत्तर न मिलना और उसके पश्चात् शरीर में लगा हुआ वाण तथा उससे बहती हुई रक्तधारा दिखायी देना आदि उद्दीपन विभाव हैं । हृदय में विषाद का उद्वेलन और मुख से हाहाकार शब्द निःसृत होना अनुभाव हैं। मोह, चिन्ता, विषाद, दैन्य आदि संचारी भाव हैं । स्थायी भाव शोक रस-दशा की उच्च भूमि तक जा पहुंचा है । वह मार्मिक स्थल यह है : बलभद्र जल ले आइयौ, सूतो निहचल देष्यो आय तौ। उठो उठो भाई स्यौं कहै, पीवो जल मुख धोवी काय तौ ॥ बोलो बोलो भाई स्यौं भणे, रिस रह्यो क्यौं वन में आय तो । पाणी पीवी क्यों नहीं, ल्यायो जल दूरंतर जाय तौ ॥ धूलि भर्यो अंग अति घणों, उठि उठ केसो धीर तौ । निद्रा तज जागो अब, बार एक बोलो तुम वीर तौ ॥ यानै मुषि दै और भी कहा जु वचन अनेक ॥ कांधे ले चाल्यौ अब, सूतो जांणि विवेक ॥ वाण लग्यौ देण्यो तबै रुधिर बह्यो तिहि बार । हाहाकार कियौ तबै बलिभद्र दुष को भार ॥' कहना न होगा कि कतिपय आलोच्च काव्यों में करुणामूलक प्रसंगों का अभाव नहीं है। कुछ स्थल तो असंदिग्ध रूप से करुण रस के हैं, जहाँ उसकी व्यंजना सम्पूर्ण मार्मिकता के साथ देखने को मिलती है। नेमीश्वर रास, पद्य १२२६-३०, पृष्ठ ७२ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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