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रस-योजना
२३१ है। अन्य प्रबन्धकाव्यों में भक्ति रस की योजना अनेक रूपों में हुई है। 'पावपुराण', 'नेमीश्वर रास',३ 'नेमिनाथ मंगल" प्रभति काव्यों में तीर्थकरों की पंच कल्याणक स्तुतियों में भक्ति रस की प्रतिष्ठा है। उनमें तीर्थंकर
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१. सगंध पुष्प बेलि कुन्द केतकी मंगाय के ।
चमेलि चम्प सेवती जुही गुही जु लाइकै ॥ गुलाब कंज लाइची सबै सुगंध जाति के । सुमालती महा प्रमोद ले अनेक भाँति के ॥ सुवर्ण तार पोह बीच मोति लाल लाइया । सुहीर पत्र नील पीत पद्म जोति छाइया ॥ शची रची विचित्र भाँति चित्र दे बनाइ है । सु इन्द्र ने उछाह सौं जिनेन्द्र को चढ़ाइ है ॥
-फूलमाल पच्चीसी, पद्य ६। (क) तुम जगपति देवन के देव । तुम जिन स्वयं बुद्ध स्वयमेव ॥
तुम जगरक्षक तुम जगतात । तुम बिन कारन बंधु विख्यात । नमो देव असरन आधार । नमो सर्व अतिसय भंडार ।। नमो सकल सिव संपति करन । नमो नमो जिन तारन तरन ॥
-पावपुराण, पद्य ६०-६२, पृष्ठ १०२-१०३ । (ख) वही, पद्य १४६ से १६२, पृष्ठ १३७-१३८ । (क) नेमीश्वररास, पद्य ७१६, पृष्ठ ४२ ।
(ख) वही, पद्य ७३६, पृष्ठ ४३।। __ अरी प्रभु प्रदक्षिना दीनी हो ।
अरी सुर वृष्टि कुसुम कीनी हां । अरी नभ दुदंभी बजावै हां । अरी सुरपत ठाढ़े गुन गावं हां । ठाढ़े तो सुरपति करे पूजा नेम तप कल्याण की । अष्ट द्रव्य चढाइ कीनी आरती गुरु ग्यान की । धन्य धन्य कहि करै अस्तुति परम आनंदित भये । देवगण सब संग लेकरि आपु प्रभु सिवपुर को गये ।
-नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ ५।